SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 52 रक्षा करता है, उसी प्रकार राजा को भी अपनी प्रजा की रक्षा करना चाहिए। कठोर दण्ड देने वाला राजा अपनी प्रजा को अधिक उद्विग्न कर देता है । इसलिए प्रजा उसे छोड़ देती है तथा मन्त्री आदि प्रकृतिजन भी ऐसे राजा के विरक्त हो जाते हैं (ख) मुख्यवर्ग की रक्षा :- जिस प्रकार ग्वाला अपनी गायों के समूह में मुख्य पशुओं के समूह की रक्षा करता हुआ पुष्ट (सम्पत्तिवान्) होता है, क्योंकि गायों की रक्षा करके वह विशाल गोधन का स्वामी हो सकता है. उसी प्रकार राजा भी अपने मुख्यवर्ग की प्रमुख रूप से रक्षा करता हुआ अपने और दूसरे के राज्य में पुष्टि को प्राप्त होता है जो राजा अपने अपने मुख्य बल ये पुष्ट होता है वह समुद्रान्त पृथ्वी को बिना किसी यत्न के जीत लेता है * । (ग) घायल और मृत सैनिकों की रक्षा :- यदि प्रमाद से किसी गाय का पैर टूट जाय तो ग्वाला बाँधना आदि उपायों से उस पैर को जोड़ता है, गाय को बाँधकर रखता है, बंधी हुई गाय को तृण देता है और उसके पैर को मजबूत करने का प्रयत्न करता है तथा पशुओं पर अन्य उपद्रव आने पर भी वह उसका शीघ्र प्रतीकार करता है, इसी प्रकार राजा को चाहिए कि वह सेना में घायल हुए योद्धा को उत्तम वैद्य से औषधि दिलाकर उसकी विपत्ति का प्रतीकार करे और वह खीर जन्न अच्छा हो जाय तो उसकी आजीविका का विचार करे। ऐसा करने से भृत्यवर्ग सदा सन्तुष्ट बने रहते हैं। जिस प्रकार ग्वाला गोठ से गाय की हड्डी विचलित हो जाने पर उस हड्डी को वहीं पैलता हुआ उसका योग्य प्रतीकार करता है, उसी प्रकार राजा को भी संग्राम में किमी मुख्य मृत्य के मर जाने पर उसके पद पर उसके पुत्र अथवा भाई को नियुक्त करना चाहिए। ऐसा करने से नृत्यलोग 'यह राजा बड़ा कृतज्ञ हैं' ऐसा मानकर अनुराग करने लगेंगे और अवसर पड़ने पर निरन्तर युद्ध करने वाले बन जायेंगे 20 | (घ) सेवकों की दरिद्रता का निवारण तथा सम्मान :- गायों के समूह को कोई कीड़ा काट लेता है तो ग्वाला योग्य औषधि देकर उसका प्रतीकार करता है, उसी प्रकार राजा को भी चाहिए कि अपने सेवक को दरिद्र अथवा खेदखिन्न जान उसके चित्त को सन्तुष्ट करे ! जिस सेवक को उचित आजीविका प्राप्त नहीं है, वह अपने स्वामी के इस प्रकार के अपमान से विरक्त हो जायेगा. अतः राजा कभी अपने सेवक को विरक्त न करे। सेवक को दरिद्रता को घाव के स्थान में कीड़े उत्पन्न होने के समान जानकर राजा को शीघ्र ही उसका प्रतीकार करना चाहिए। सेवकों को अपने स्वामी से उचित सम्मान प्राप्त कर जैसा सन्तोष होता है, वैसा सन्तोष बहुत धन देने पर भी नहीं होता है । जिस प्रकार ग्वाला अपने पशुओं के झुण्ड में किसी बड़े बैल को अधिक भार धारण करने में समर्थ जानकर उसके शरीर की पुष्टि के लिए नाक में तेल डालना आदि कार्य करता है, उसी प्रकार राजा को भी चाहिए कि वह अपनी सेना में किसी योद्धा को अत्यन्त उत्तम जानकर उसे अच्छी आजीविका देकर सम्मानित करे। जो राजा अपना पराक्रम प्रकट करने वाले वीर पुरुष को उसके योग्य सत्कारों से सन्तुष्ट रखता है, उसके भृत्य उस पर सदा अनुरक्त रहते हैं और कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ते हैं । (ङ) योग्य स्थान पर नियुक्ति :- जिस प्रकार ग्वाला अपने पशुओं को काँटे और पत्थरों से रहित तथा शीत और गर्मी आदि की बाधा से शून्य बन में चराता हुआ बड़े प्रयत्न से उसका पोषण करता है, उसी प्रकार राजा को भी अपने सैनिक को किसी उपद्रवहीन स्थान में रखकर
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy