SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशाल प्रताप को प्रकट करने वाला कोस्तुभमणि ये सात रत्न थे । सोलह हजार प्रमुख राजा और आठ हजार भक्तगण बद्ध देव उनकी निरन्तर सेवा करते थे और उनकी सोलह हजार स्त्रियाँ थी । विद्याधर - विद्याबल से सम्पन्न राजा विद्याधर कहलाते थे । हरिवंश पुराण के शब्दोसवें सर्ग में गैरिक, गान्पार, मानव पुत्रक, मनु पुत्रक, मूलवीर्य, अन्तरमूमिचर,शंकुक, कौशिक, मातंग, श्मसाननिलय, पाण्डुक, कालश्वपाकी, श्वपाकी, पावतेय, वंशालय, तथा वार्शमलिक नामक विद्याधरों का उल्लेख किया गया है । सिद्धकूट जिनालय में वन्दना के लिए गए हुए वमुदेव को मदनवेगर ने इन विद्याघरों का परिचय इस प्रकार कराया - जो हाथ में कमल लिए तथा कमलों की माला धारण किये हमारे स्तम्भ के आश्रय बैठे हैं वे गौरिक नाम के विद्याधरी हैं । लाला मालायें धारण किये तथा लाल कम्बल के बस्त्रों को पहिने हुए मान्मार खम्मा का आश्रय गान्धार जाति के विधानर बैते हैं। जो नानाषणों से युक्त एवं स्वर्ण के समान पीले वस्त्रों को धारण कर मान स्तम्भ के सहारे बैठे हैं वे मानव पुत्रक विद्याघर हैं। जो कुछ कुछ लाल वस्त्रों से युक्त एवं मणियों के देदीव्यमान आभूषणों से सुसज्जित हो मान स्तम्भ के सहारे बैठे हैं वे पनुपुत्रक विद्याधर हैं। नाना प्रकार की औषधियां जिनके हाथ में हैं तथा जो नाना प्रकार के आभूषण और मालायें पहिनकर औषधिस्तम्भ के सहारे बैठे हैं वे मलवीर्य विद्याधर हैं । सब ऋतुओं के फूलों की सुगन्धि से युक्त, दापय आभरण और मालाओं को धारणकर जो भूमिमण्डप स्तम्भ के समीप बैठे हैं वे अन्तभूपिचर विद्याधर हैं । जो चित्रविचित्र कुण्डल पहने तथा साकार बाजुबन्दों से सुशोभित हो शंकु स्तम्भ के समीप बैठे हैं खे शंकुक नाम विद्याधर हैं । जिनके मुकुटों पर सेहरा बंधा हुआ है तथा जिमके मणिमय कुण्डल देदीप्यमान हो रहे हैं । ऐसे कौशिक स्तम्म के आश्रय कौशिक जाति के विद्याधर बैठे हैं। यह आर्य विद्याघरों का परिचय है। मातंग विद्याधरों के निकायों का परिचय यह हो - जो नीले मेघों के समान श्यामवर्ण है तथा नीले वस्त्र और नीली मालायें पहिने हैं वे मातंग स्तम्भ के समीए बैठे मांतग विद्याधर हैं । जो श्मसान की हड्डियों से निर्मित आभूषणों को धारणकर भरम से धूलि धूसर हैं वे श्मसान स्तम्भ के आश्रय बैठे हुए श्मसान निलयनामक विद्याधर हैं । ये जो नीलमणी और वैडूर्यमणि के समान वस्त्रों को धारण किए हुए हैं तथा पाण्डुर स्तम्भ के समीप आकर बैठे हैं ये पाण्डुक नामक विद्याधर हैं जो ये कालीमृगचर्म को धारण किए तथा काले नमड़े से निर्मित वस्त्र और मालाओं को पहिने हुए काल स्तम्भ के पास आकर बैठे हैं वे काल श्वपाकी विद्याधर हैं । जो पीले पोले केशों से युक्त हैं, तपाए हुए स्वर्ण के आभूषण पहिने हैं और श्वपाको विद्याओं के स्तम्भ के सहारे बैठे हैं वे श्वपाकी विद्याधर हैं । जो वृक्षों के पत्तों के समान हरे रंग के वस्त्रों से आच्छादित है तथा नाना प्रकार के मुकुट और मालाओं को धारण कर पार्वत स्तम्भ के सहारे बैठे हैं वे पार्वतेय नाम से प्रसिद्ध है । जिनके आभूषण बांस के पत्तों से बने हुए हैं तथा जो सन्त्र ऋतुओं के फूलों की मालाओं से युक्त हो वंशस्तम्म के आश्रय से बैठे हैं वे वंशालय विद्याधर माने गए हैं । जिनके उत्तमोत्तम आभूषण महासों के शोभायमान चिन्हों से युक्त हैं तथा जो वृक्ष मूल नामक महास्तम्भों के आश्रय बैठे हैं वे वार्शमूलक नामक विद्याधर है।।
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy