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- 161 ठीक विचारकर यथास्थान प्रयोग करने पर ये समाहता (दाता) के समान इच्छित फल प्रदान करते है अथवा जिस प्रकार यथा स्थान यथा योये हुये धान उत्तम फल देते है उसी प्रकार राजा द्वारा यथा स्थान यथा समय प्रयोग किए हुए सामादि उपाय फल देते हैं207 | सामादि उपायों के साथ शक्ति का प्रयोग करना प्रधान कारण है। जिस प्रकार खोदने से पानी और परस्पर की रगड़ से अग्नि उत्पन्न होती है, उसी प्रकार उद्योग से जो उत्तम फल अदृश्य है वह भी प्राप्त करने योग्य हो जाता है |जय की इच्छा रखने वाले पुरुष को सदा नीति और पराक्रम दोनों वृक्षों को पकड़े रहना चाहिए । इनको छोड़कर फल सिद्धि का दूसरा कारण नहीं है । नीति और पराक्रम में भी नीति श्रेष्ठ है । नीतिहीन का पराक्रम वृथा है । मस्त हाथी को फाड़ डालने वाले सिंह को व्यान भी मार लेता है। नीति के अनुगामी प्रबल शत्रु को भी सहज हो वश में कर लेते हैं । शिकारी लोग मस्त हाथी को भी उपाय से बांध लेते हैं। नीतिमार्गानुगामी पुरुष का काम यदि बिगड़ जाय तो उसमें पुरुष का कोई दोष नहीं है ।वह सब पापकर्म का पराभव है । जो पुरुष नीतिशास्त्र के दिखलाये मार्ग पर नहीं चलता वह कुबुद्धि बालकों की तरह कष्टरूपो जसतो लकड़ी को हाथ से अपनी
और खींचता है। विवेकी पुरुष को शत्रु पर सहसा दण्ड का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कुछ राजा अभिमानी होने के कारण केवल साम (प्रियवचनों) से ही शान्त हो जाते हैं। अभिमानी मनुष्य दण्ड की धमकी से बिगड़ जाता है,शान्त नहीं होता। आग से आग नहीं बुझती है। दुद्धिमान् पुरुष सिद्धि के लिए शत्रु के प्रति साम का प्रयोग करते हैं । उसके बाद दान और भेद का प्रयोग किया जाता है। दण्ड से पोधा पहुंचाना विवेको पुरुषों का आंतम पाय है । पुरुष को एक प्रिय बात सैकड़ों अपराधों को धो डाल सकती है । वप्रपात करने वाले बादल शीतल जल देने के कारण ही लोगों को प्यारे हैं । दान में धन हानि होती है । दण्ड में बल (सेना) की हानि होती है । मेद में कपटी होने का अयश फैलता है | इस कारण साम से बढ़कर अच्छा उपाय नहीं है।
नीतिमार्ग - नीतिमार्ग के अनुसारण से भोगों की परम्परा चलती है तथा घोर पतन रोका जाता है, अतः शक्तिशाली शत्रुओं के विनाश में समर्थ तथा निर्दोष आचरण को धारण करने वाले राजा को नीति की अवज्ञा नहीं करना चाहिए, क्योंकि नीतिपथ ही विपत्तियों का नाश करता है तथा अभिलषित पदार्थों को सहज ही जुटाता है | नीतियों में मध्यम मार्ग अथवा माध्यस्थ नीति को धारण करने का प्रयत्न करना चाहिए। इससे नीति,शौर्य, घन, कीर्ति सरस्वती तथा लक्ष्मी की अनवरत वृद्धि होती है । कभी मध्यस्थ मित्र की स्थिति नाजुक हो जाती है। मित्रमण्डल के कर्तव्यों की भावना से प्रेरित संघर्षरत दोनों पक्षों का मित्र राजा जव संघर्ष रोकने के लिए मध्यस्थ बनता है तो उसे दोनों के आक्रमण सहने पड़ते हैं तथा कुछ समय दोनों ही उस पर शंका करते
राजा को नीतिज्ञ होना चाहिए। यदि वह सिद्धि की कामना करता है तो उसे बिना विचार किए कार्य नहीं करना चाहिए । यद्यपि यह सत्य है कि अभिमानी पुरुषों को अपना पराभव सहन नहीं हो सकता है, किन्तु बलवान पुरुषों के साथ विरोध करना भी पराभव का कारण हैं | महापुरुषों का आश्रय लेने में कोई हानि नहीं है ! महापुरुषों का आश्रय करने से मलिन पुरुष भी पूज्यता को प्राप्त हो जाते है । पूग्ध पुरुषों की पूजा करने से इसलोक तथा परलोक दोनों ही लोकों में जीवों की उन्नति होती है और पूज्य पुरुषों की पूजा का उल्लंघन करने से दोनों ही लोकों में पाप बन्य होता है | बलवान से भी अधिक बलवान् है, इसलिए मैं बलवान् ई. ऐसा गर्व नहीं