SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 141 सभायें - हरिवंशपुराण में कुछ सभाओं का उल्लेख मिलता है। इन उल्लेखों से उस समय की सभाओं की एक झाँकी प्राप्त होती है। प्रमुख सभाओं का परिचय निम्नलिखित है(1) विजयदेव की सभा जम्बूद्वीप की पूर्व दिशा में विजयद्वार के रक्षक विजयदेव के नगर में बीच के भवन में चमर और सफेद छत्रों से युक्त उसका सिंहासन है। उस पर वह पूर्वाभिमुख हो बैठा है। उसके उत्तर दिशा में छह हजार लाभानिक देव बैठते है तथा आगे और दो दिशाओं में छह पट्टदेवियाँ आसन ग्रहम करती हैं। पूर्व दक्षिण दिशा में आठ हजार उत्तम पारिषद देव बैठते हैं, मध्यपरिषद के दश हजार देव दक्षिण दिशा में स्थित होते हैं। वाह्य परिषद के बारह हजार देव पश्चिम दक्षिण दिशा में आसनारूढ़ होते हैं और सात सेनाओं के महत्तरदेव पश्चिम दिशा में आसन ग्रहण करते हैं। चारों दिशाओं में अठारह हजार अंगरक्षक रहते हैं और चारों दिशाओं में उतने ही भद्रासन है" । त्रिजयदेव की इस सभा की किसी राजा की सभा के रूप में कल्पना की जाय तो स्थिति इस प्रकार होती है नगर के बीच के भवन में राजा का उत्तम सिंहासन है, उस पर वह पूर्व की ओर मुखकर बैठता है। उसकी उत्तर दिशा में उसके सभासद बैठते हैं और आगे दो दिशाओं में पट्ट रानियाँ आसन ग्रहण करती हैं। पूर्व दक्षिण दिशा में उत्तम पारिषद सभा सह बैठते हैं। दक्षिण सभा में मध्यम परिषद के सदस्य बैठते हैं, पश्चिम दक्षिण में वाह्य परिषद् के सदस्य बैठते हैं। पश्चिम दिशा में सात सेनाओं के महत्तर ( प्रधानपुरुष) बैठते हैं। वे चारों दिशाओं में अठारह हजार अंगरक्षक बैठते हैं। उपर्युक्त कल्पना से राजाओं की उत्तम परिषद्, मध्यम परिषद् और वाह्य परिषदों के अस्तित्व का अनुमान होता है। इन परिषदों के साथ सेनामहत्तरों के बैठने की सूचना भी प्राप्त होती है तथा चारों दिशाओं में रक्षा के लिए अंगरक्षकों की नियुक्ति की भी जानकारी प्राप्त होती है। - सुधर्मा सभा और उसके समान अन्य सभायें - विजयदेव के भवन से उत्तरदिशा में एक सुधर्मा नामक सभा है, जो छह योजन लम्बी, तीन योजन चौड़ी, 9 योजन ऊंची और एक कोश गहरी है। सुधर्मा सभा से उत्तरदिशा में एक जिनालय है, उसकी लम्बाई, चौड़ाई आदि का विस्तार सुधर्मा सभा के समान है। पश्चिमोत्तर दिशा में उपपार्श्व सभा है। उसके आगे अभिषेक सभा, उसके आगे अलंकार सभा और उसके आगे व्यवस्थाय सभा है। ये सभी सभायें सुधर्मा सभा के समान है" । उपर्युक्त वर्णन से यह अनुमान होता है कि राजा के मुख्य सभा के उत्तर में जिनालय का निर्माण होता था तथा पश्चिमोत्तर सभा में मुख्य सभा के समान ही उपपार्श्वसभा, और अलंकार सभायें बनाई जाती था । शक्रसभा 14 – इन्द्र सभा | - - बलदेव सभा हरिवंशपुराण के 41 वें सर्गके उल्लेखानुसार बलदेव के महल के आगे एक सभामण्डल था जो शक्र सभामण्डल (इन्द्रसभा मण्डल) के समान दीप्तिमान था। इससे ज्ञात होता है कि राजाओं के महल के आगे सभामण्डप का निर्माण किया जाता था । राजा क्सु की सभा राजा वसुं प्रातः काल सभा के समय सिंहासन पर बैठता था " | जब महत्त्वपूर्ण विषय पर राजा का निर्णय होना होता था तो प्रश्नकर्ताओं से घिरे हुए वादी और प्रतिवादी सभा (आस्थानी) में आते थे। इस समय निमन्त्रित ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूत्र तथा आश्रमवासी आते थे और अनिमन्त्रित साधारण मनुष्य भी सहजस्वभाव वश प्रश्न करने के लिए आ बैठते थे। -
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy