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________________ 93 राजा पन्चियों के द्वारा चर्चा किए जाने पर शत्रुओं का सब प्रकार आना जाना आदि जान लेता है और उनके द्वारा उसका आत्मबल सन्निहित रहता है । इस प्रकार यह जगत को जीतने में समर्थ होता है-1 उत्तरपुराण के अनुसार राजी प्रजा का रक्षक है, इसलिए जब सक प्रजा की रक्षा करने में समर्थ होता है तभी तक राजा रहता है। यदि राजा इससे विपरीत आचरण करता है तो सचिवादि उसे त्याग देसे हैं। राजा मन्त्रियों से मिलकर किसी समस्या के समाधान का उपाय खोज लेता है बुद्धिमान व्यक्ति उपाय के द्वारा बड़े बड़े पुरुष की भी लक्ष्मी का हरण कर लेते हैं। अपने विश्व मन्त्रियों पर राज तन्त्र (स्वराष्ट्र) तथा अवाप (परराष्ट्र) की चिन्ता रखकर स्वंय शास्त्रेक्त मार्ग से धर्म तथा काम में लीन हो जाता है | नौसिवाक्यामृत के अनुसार पुष्पमाला के आकार को धारण करने वाले तन्तु सुगन्धिरहित होने पर भी ( जिस प्रकार) पुष्पों को संगति से देवताओं के सिर पर धारण किए जाते हैं" , इसी प्रकार मूर्ख एवं असहाय राजा सुयोग्य मन्त्रियों की अनुकूलता से शत्रुओं द्वारा अजेय हो जाता है। जो राजा मन्त्री पुरोहित और सेनापति के कहे हुए योग्य सिद्धान्तों का पालन करता है, उसे आहार्यबुद्धि कहते हैं । अचेतन पत्थर महापुरुषों से प्रतिष्ठित होकर देव बन जाता है तो मनुष्य की तो बात ही क्या है ? अर्थात मनुष्य विशिष्ट पुरुषों के संसर्ग से अवश्य ही महत्व को प्राप्त हो जाता है । इतिहास से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने स्वंय राज्य का अधिकारी न होने पर भी विष्णु गुप्त चाणक्य के अनुग्रह से साम्राज्य पद को प्राप्त किया" । मन्त्रियों की संख्या- मन्त्रियों की संख्या अनेक होती थी, सामान्य मन्त्रियों के अतिरिक्त बहुत से मुख्य मन्त्री भी होते थे | सभी मन्त्रियों को मिलाकर मन्त्रिमण्डल बनता था मन्त्रिमण्डल को पद्मचरित में मन्त्रिवर्ग कहा गया है। हरिवंश पुराण में भी मन्त्रियों की कोई निश्चित संख्या का उल्लेख प्राप्त नहीं होता है । राजा श्री धर्मा के बृहस्पति, बलि, नुमुचि और प्रहलाद ये चार मन्त्री थे । इससे यह अनुमान होता है कि सामान्यतः राजा के चार ही मन्त्री हुआ करते थे। आदिपुराण से मन्दियों की संख्या प्रायःचार होने से समर्थन होता हैये चारों राज्य के चार चरणों के समान होते थे। इनकी उत्तम योजना के कारण राजा का राग्य समवृत्त (जिसके चारों चरण समान लक्षण के धारक हों) के समान विस्तार को प्राप्त होता था राजा आवश्यकतानुसार इन मन्त्रियों में से कभी तीन के साथ कभी दो के साथ, कभी एक के साथ कभी चारों के साथ मन्त्रणा करता था आचार्य सोमदेव का कथन है कि राजा को केवल एक मन्त्री नहीं रखना चाहिए क्योंकि अकेला मन्त्री स्वतन्त्र होने से निरकुंश हो जाता है और कठिनता से निश्चय करने योग्य कार्यों मे मोह को प्राप्त हो जाता है ।अकेला व्यक्ति अपने को अनेक कार्यों में नियुक्त नहीं कर सकता है । जिस प्रकार एक शाखा वाले वृक्ष से अधिक छाया नहीं हो सकती, उसी प्रकार अकेले मन्त्री से राज्य के महान् कार्य सिद्ध नहीं हो सकते है ।राजा कोदो मन्त्री भी नही रखना चाहिए, क्योंकि दो मन्त्री आपस में लड़कर राज्य को नष्ट कर डालते हैं। यदि दोनो मन्त्रियों का निग्रह किया जाता है तो वे दोनों मिलकर राजा को नष्ट कर देते हैं। दो बलिष्ठ बैल जिस प्रकार अधिक भार होने में नियुक्त किए जाते है, उसी प्रकार दो गुणी मन्दियों के रखने में कोई हानि नहीं है। इसी का समर्थन करते हुए सोमदेव कहते हैं यथोक्तगुण (सदाचार आदि) वाले एक या दो मन्त्रियों को नियुक्ति में कोई दोष नहीं है । सामान्यतया राजा को तीन, पाँच या सात मन्त्री नियुक्त करना
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
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