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________________ को हमेशा पदो में जो गहिद है वह मा में सम्मान हो उन्नत होता हुआ स्वतन्त्र रूप से स्वयं शोभा को प्राप्त होता है। तृतीया-श्री मानतुंग आचार्य विरचित भक्तामरस्तोत्र का जो मानव नित्य पाठ करता है वह अन्तरंग लक्ष्मी ज्ञानादिकों तथा बहिरंग लक्ष्मी सम्पत्ति तथा अच्छी गति को प्राप्त होता है। इस काव्य में रूपक, श्लेष, अनुप्रास अलंकारों के मिश्रण से संकर अलंकार भक्ति में विभोर कर देता है। इसके मन्त्र-यन्त्र की साधना करने से सर्व-कार्यों की सिद्धि होती है। यह सम्पूर्ण मन्त्र शास्त्र का कार्य करता है। इसी प्रकार अन्य श्लोकों में भी अर्थालंकारों की पुट की गयी है। यथा श्लोक नं. 16, 17, 18 में व्यतिरेकालंकार, श्लोक नं. 30 में पूर्णोपमालंकार, काव्य नं. 40 में अनुप्रास-उपमा-रूपक और फलोत्प्रेक्षा के मिश्रण से संकर अलंकार, श्लोक नं. 3 में भ्रान्तिमान् अलंकार। इनके अतिरिक्त अन्य श्लोकों में भी यथासम्भव अतिशयोक्ति, आक्षेप, दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा और समासोक्ति इन अलंकारों की पुट देकर इस भक्तामरस्तोत्र को अलंकृत किया गया है, इसलिए यह लघुस्तोत्र सब स्तोत्रों में प्रधान सपझा जाता है। शब्दालंकार भी इस स्तोत्र की पर्याप्त सजावट कर रहे हैं। इस स्तोत्र का प्रत्येक पद्य अपना मन्त्र, यन्त्र और तन्त्र से विभूषित है, इन मन्त्रों का जप साधन करने से अनेक विद्याओं की सिद्धि होती है, विविध इष्टकार्य सिद्ध होते हैं। कल्याणमन्दिरस्तोत्र ___इस स्तोत्र की रचना विक्रम सं. 625 में उत्तरभारत को अलंकृत करनेवाले श्री सिद्धसेन आचार्य, द्वितीय दीक्षा नाम श्री कुमुदचन्द्र आचार्य द्वारा की गयी है। ये संस्कृत कवि और दार्शनिक विद्वान् के रूप में प्रसिद्ध हैं तथा दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराएँ इनको अपना पूज्य आचार्य मानती हैं। __ इस स्तोत्र में सरस एवं अलंकृत 44 श्लोकों द्वारा तैयींसवें तीर्थंकर भ. पार्श्वनाथ की गौरवगाथा का कीर्तन किया गया है। सम्पूर्ण स्तोत्र में वसन्ततिलका छन्द शोभित होता है परन्तु अन्तिम छन्द आर्या के नाम से चमक रहा है। इस स्तोत्र के कुछ श्लोकों में उदाहरणार्थ अलंकारों की छटा को देखिए-- मोहक्षयादनुभवन्नपि नाथ! मयों नूनं गुणान् गणयितुं न तव क्षमेत । कल्पान्तवान्तपयसः प्रकटोऽपि यस्मान् मीयेतकेन जलधर्नन रत्नराशिः।। हृद्वतिनि त्वयि विभो ! शिथिलीभवन्ति, जन्तोः क्षणेन निविडा अपि कर्मबन्धाः । जैन पूजा-काव्य के विविध रूप :: 97
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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