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चौपाई 15 मात्रा प्रथमोंकाररूप ईशान, करुणासागर कृपानिधान । त्रिभुवननाथ इंश गुणवृन्द, गिसतीत गुणमूल अनन्द।। गुणी गुप्त गुणग्राहक बली, जगतदिवाकर कौतूहली ।
क्रमवर्ती करुणामय क्षमी, दशावतारी दीरघ दमी। स्तवकाव्य के अतिरिकन हिलीय स्तोत्र (स्तुति) कात्म के सदाहरण रुप में कार रचनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं, जिसकी परिभाषा पहले कही गयी है। संस्कृत में संक्षिप्त स्तुतिकाव्य -- एक तीथंकर महावीर सम्बन्धी
वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमहितो, वीरं बुधाः संश्रिताः वीरेणाभिहतः स्वकर्मनिचयः, वीराय भक्त्या नमः । वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपो
योरे श्रीद्युतिकान्तिकीर्तिधृतयो, हे वीर भद्रं त्वयिश' सारांश-भगवान महावीर सब सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रों द्वारा पूजित हैं। श्री गणधर मुनिगण आदि विज्ञजन, श्रीमहावीर को आश्रित होते हैं। श्री वीर के द्वारा आटकर्मों का समूह विनष्ट किया गया है। हम भक्ति से महावीर के लिए प्रणाम करते हैं। भगवान महावीर से यह सर्वोदय धर्मतीर्थ उदय को प्राप्त हुआ है। भगवान वर्धमान का अखण्ड तप वहत कठोर था। भगवान महावीर में अन्तरंग बहिरंग लक्ष्मी, ज्ञानज्योति, कायकान्ति, यश और धैर्य आदि सभी श्रेष्ठ गुणविद्यमान थे। हं तीर्थंकर सन्मति ! आपके विद्यमान रहने पर ही अखिल विश्व का कल्याण हो सकता है। इस श्लोक में संक्षेप से भगवान पहावीर के गुणों का स्मरण किया गया है। इसमें शार्दूलविक्रीडित छन्द है। इस छन्द के प्रत्येक चरण में मगण, सगण, जगण, संगण, तगण, तगण और एक अक्षर गरु होता है, वीर शब्द का संस्कृत की आठ विभक्तियों में निर्देश है।
इस श्लोक में वीररस तथा तद्गुण अलंकार है। संस्कृत में संक्षिप्त भगवान महावीर का स्तोत्र (स्तुति)
वचनरचनधीर: पापधूलीसमीरः, कनक निकरगौरः क्रूरकारिशूरः ।
कलषदहननीरः पातितानंगवीरो, जयति जगति चन्द्रोवर्धमानो जिनेन्द्रः॥ इस श्लोक में मालिनी छन्द में रूपकालंकार और उपमालंकार का संकर मिश्रण) है एवं वीररस का प्रवाह है। 1. श्री विपतधितसंग्रट : स. न. समनिसागः, प... बास्यानट भिन्न ज्ञानपीठ सिद्धक्षेत्र सानागिर
धनिया प.प्र.. मन ils.. १ . याचन्द्रसादिन्याचार्य . भगवान महावीर एस्तकस्तवन : सम्पादक. वही. प्र.-शास्त्रिपरिषद् बड़ौत (मेरस 3477. पृ. 17
11 :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन