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________________ 7. धूप उत्कृष्ट सौभाग्य प्राप्ति अष्ट कर्म के विनाशार्थ B. फग इष्ट पदार्थ की प्राप्ति मोक्ष पद की प्राप्ति के लिए 9. अग्नं उत्तम पद की प्राप्ति अहंन्त पद की प्राप्ति हेतु 10. महार्घ अमूल्य पद की प्रा५॥ त्तिख ५६ को प्रायः स्तु 11. पूर्णाघं इन्द्र पद की प्राप्ति निर्वाणकल्याण की प्राप्ति हेतु विशेष-आचार्यकला पं. आशाधर जी आदि ने द्रव्य अर्पण करने के लौकिक प्रयोजन और जयसेन, पद्मनन्दी आदि आचार्यों ने आध्यात्मिक प्रयोजन निर्दिष्ट किये पूजा के प्रकार पूजा मूलतः दो प्रकार की होती है-भावपूजा, और द्रव्यपूजा। तीर्थकर, अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु (मुनि-ऋषि)-इन महान् आत्माओं के गुणों के स्तवन कीर्तन से भावों या मन के विचारों को शुद्ध करना भावपूजा है और शुद्ध 'भावों के साथ शब्दों द्वारा गुण-कीर्तन करते हुए आठ द्रव्यों का विनय के साथ समर्पण करना द्रव्यपूजा कही जाती है। भावपूजा के साथ द्रव्यपूजा करना जीवन में उपयोगी है। शुद्ध भावों के बिना द्रव्यपूजा की क्रिया निष्फल है।' अष्ट द्रव्यों के प्राचीन नाम (1) दिव्येण पहाणेण, शुद्ध प्रासुक जल एवं जलाभिषेक (2) दिव्वेण गंधेण, श्रेष्ठ सुगन्धित चन्दन; (४) दिव्येण अखेण, श्रेष्ठ अखण्ट अक्षत; (4) दिवेण पुप्फेण, श्रेष्ठ लवंग आदि पुष्प; (5) दिब्वेण चुणगण, दिव्य घरु (नैवेद्य); (6) दिन्वेण दीवेण, दिव्य दीपक; (7) दिवेण धूवेण, सुगन्धित धूप; (8) दिब्बण बासेण, श्रेष्ठ फल । {आ. कुन्दकुन्द कृत एवं पूज्यपादकृत दशभक्ति : सं. ए शान्ति-राजशास्त्री, मैसूर, 1934, पृ. 158)। 'यस्मात् क्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशून्याः' यही नीति प्रसिद्ध है। पूजा के विशेष रूप से पाँच प्रकार होते हैं-1) नित्य पूजा, (2) आष्टाहिक पूजा (नन्दीश्वर पूजा), (3) चतुर्मुखपूजन, सर्वतोभद्र, महामह, (4) कल्पद्रुमपूजन, (5) इन्द्रध्वज पूजन। 1. आ. कुमुदचन्द्र, कल्याण मन्दिा स्तोत्र, पृ. 44. पद्य 39. Hi :: जैन पूजा-काच : 1 चिन्नन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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