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________________ धवल कवि, वीर कवि, श्रीधर (प्रथम), श्रीधर (तृतीय), अमरकीर्ति गणि, महाकवि सिंह, यशः कीर्ति (प्रथम), उदयचन्द्र, विनयचन्द्र, दामोदर (दि.) अथवा ब्रह्म, सुप्रभाचार्य, विमालकीर्ति, तेजपाल, कवि हरिचन्द्र या जयमित्रहले, हरिदेव, नरसेन या नरदेव, विजयसिंह, वल्ह या बृचिराज, माणिक्यराज, भगवती दास, कवि देवनन्दि, जल्हि गले. कवि लक्ष्मी चन्द्र, कवि नेमिचन्द्र । हिन्दी के प्रमुख कवि और लेखक विश्व के राष्ट्रों में समय-समय पर जैसे-जैसे भाषाओं का आविष्कार और विकास होता जाता है वैसे-वैसे ही उन भाषाओं में साहित्य-सिद्धान्त की रचना करना भी परम आवश्यक होता है। अपभ्रंश के पश्चात् राजस्थानी नथा ब्रजभाषा का भी राष्ट्र में विकास हुआ हैं तथा उस भाषा में काव्य की रचना भी बहुत हुई है। इसी क्रम में परिष्कृत हिन्दी भाषा का विकास, प्रसार तथा प्रचार हुआ है और इतना प्रसार हुआ है कि परिष्कृत हिन्दी भाषा ने राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त किया। इसलिए इस राष्ट्रभाषा में भी साहित्य रचना आवश्यक होने से जैन कवि और लेखकों ने सिद्धान्तों एवं उपासना आदि तत्त्वों पर अपनी ओजस्वी लेखनी चलायी है। हम यहाँ अब हिन्दी भाषा के कवियों एवं लेखकों का नाम निर्देश करते हैं महाकवि वनारसीदास, पं. रूपचन्द्र या रूपचन्द्र पाण्डेय, जगजीवन, कुंवर पाल, कवि सालिवाहन, कवि बुलाकीदास, भैया भगवतीदास, महाकवि भूधरदास, कवि द्यानतराय, किशनसिंह, कवि खङ्गसेन, मनोहरलाल या मनोहरदास, नथमल विलाला, पं. दौलतराम काशलीवाल, आचार्यकल्प पं. टोडरमल, दौलतराम द्वितीय, पं. जयचन्द्र छावड़ा, दीपचन्द्र शाह, सदासुख काशलीयाल, पण्डित भागचन्द्र, कवि बुधजन, कवि वृन्दावनदास, जयसागर, खुशालचन्द्र काला, शिरोमणिदास, जोधराज गोदीका, कवि लोहट, लक्ष्मीदास, गद्यकार राजमल्ल, पाण्डे जिनदास, ब्रह्मगुलाल, भारामल, बखतराम, टेकचन्द्र, पं. जगमोहनदास, पं. परमेष्ठीदास, मनरंगलाल, नवलशाह । इनके अतिरिक्त अन्य जैन कवि महोदय भी संस्कृत, अपभ्रंश, प्राकृत, हिन्दी, कन्नड़, तामिल, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के काव्यकार रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। जिन्होंने साहित्य-दर्शन, सिद्धान्त और आचारशास्त्र के विविध अंगों की रचना कर भारतीय संस्कृति एवं साहित्य को समृद्धशाली बनाया। साहित्य संसार के निर्माता ये ग्रन्थकार, कवि और लेखक, विधाता कहे जाते हैं। इसमें कोई अत्युक्ति नहीं। जैन पूजा-काव्य का मौलिक आधार बाह्य निमित्त ... सेन पूजा-काव्य का मूल उद्भव और विकास को ज्ञात करने के पश्चात् स्वभावतः यह प्रश्न होता है कि जैन पूजा-काव्य का या जैन पूजा का मूल आधार या आश्रय अथवा स्पष्ट शब्दों में कहा जाए कि पूज्य कौन है, किस Hi :: जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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