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________________ 73. मुनि पद्मसिंह - वि.सं. 1080 74. रविषेणाचार्य - वि.सं. 840 75. जयसिंह नन्दि- सन् 7-8 शती मध्य 76. नेमिचन्द्र सि.च. - ई. 10 शती उ.भा. या वि. 11 शती का पूर्वभाग 77. आ. सिंहनन्दि-ई. द्वि. शती 78. आ. सुमति - वि.सं. 8-9 शती मध्य 79. कुमारनन्दि - वि. सं. 8वीं शती 80. कुमार सेन गुरु- वि.सं. 8वीं शती 81. वज्रसूरि - वि.सं. 6वीं शती 82. यशोभद्र - वि. स. 6वीं शती पूर्व भाग ४४. शान्तिषेण-वि.स. व शर्ती 81. आ. श्रीपाल - वि.सं. 9वीं शती 85. काणभिक्षु - जिनसेन (द्वि ) के पूर्ववर्ती 86. कनकनन्दि - वि.सं. 10-11 शती मध्य 87. गुणभद्र - ई. नवमशती का अन्तचरण 38. शाकटायन पाल्यकीर्ति सन् 1140 प्रायः 89. वादीभसिंह - वि. 11 शती का उ.भा. 90. महावीराचार्य - ई. 9वीं शती का पू. भा. 91. बृहत् अनन्तवीर्य - सन् 975-1025 मध्य ५१. माणिक्यनन्दि - वि.सं. 1060 (ई. 1003) 93. आचार्य श्रीदत्त - वि.सं. 4-5 शती के मध्य । 44. महाकवि आ. विशेषवादि-ई. नवमी शती । इनके अतिरिक्त हरिवंश पुराण के अन्त में लिखित प्रशस्ति के अनुसार आचार्य विनयन्धर से लेकर जिनसेन आचार्य तक चौंतीस (34) आचार्यों का उल्लेख है। विभिन्न प्रान्तों में विक्रम तं की पंचम शती के मध्यभाग से लेकर वि.सं. 1865 तक, श्री आ. बृहत् प्रभाचन्द्र से लेकर आ. ललितकीर्ति तक पचास ( 50 ) आचार्य विश्वविख्यात हुए हैं जिन्होंने संस्कृत प्राकृत आदि विविध भाषाओं में अनेक सिद्धान्त विषयों पर तथा काव्यों पर रचना कर साहित्य एवं जैनदर्शन का प्रसार तथा प्रचार किया है। * जिस प्रकार गणधरों, महर्षियों और आचार्यों की परम्परा ने सिद्धान्त दर्शन एवं साहित्य की अनुभवपूर्ण रचनाओं से श्री तीर्थंकर भगवान महावीर की दिव्यवाणी 1. पूर्वोक्त पुस्तक, पृ. 450. ५. वहीं पुस्तक, पृ. 24 से 452. 14 जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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