SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30 वर्ष 20. नक्षत्र ग्यारह अंगज्ञानी 18 वर्ष 21. जवपाल अंगलानी 22. पाण्डव अंजानी नई 23. ध्रुवसेन अंगज्ञानी __14 वर्ष 24. कंताचार्य अंगज्ञानी 32 वर्ष योग-128 वर्ष 25. सुभद्र अनेक अंगज्ञानी 6 वर्ष 26. यशोभद्र अनेक अंगज्ञानी 18 वर्ष 27. भद्रबाहु (दि.) अनेक अंगज्ञानी 23 वर्ष 28, लोहाचार्य अनेक अंगज्ञानी 52 वर्ष योग-99 वर्ष 29. अर्हद्वलि एक अंगज्ञानी 28 वर्ष 30. माघनन्दि एक अंगज्ञानी 21 वर्ष II, धरसेन एक अंगज्ञानी 19 वर्ष 32. पुष्पदन्त एक अंगज्ञानी 98. भूतबलि एक अंगज्ञानी 20 वर्ष योग-118 वर्ष कुल योग- 683 वर्ष इसके पश्चात् भगवान महावीर की जो आचार्य-परम्परा सतत प्रवाहित होती रही है उसके द्वारा सिद्धान्त साहित्य, अध्यात्म साहित्य, कर्म साहित्य, पौराणिक चरित काव्य, कथा-काव्य, ठूतकाव्य, न्यायदर्शन साहित्य, आचार-काव्य, स्तोत्र एवं पूजाभक्ति-काव्य, नाटक-काव्य और विविधविषयक काव्यों की यथा समय यथाविषय यथायोग्य संस्कृत-प्राकृत-अपभ्रंश आदि भाषाओं में रचना की गयी है जिससे धर्म, दर्शन, साहित्य और काव्यों का अखण्ड रूप से प्रचुर प्रसार और प्रचार हुआ है। वह आचार्य परम्परा अखिल विश्व का कल्याण करती है। उसकी विशालता का दिग्दर्शन अग्र पृष्ट पर अंकित है। I. आचार्य गुणधर-विक्रमपूर्व प्रथम शाती. 2. आचार्य धरसेन--सन् 79 3. आ. पुप्पदन्त-सन् 50 से 80 4. आ. भूतबलि-सन् 87 प्रायः 1. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग 2 : टी. नमिचन्द्रजेंन सागर : सन् 1974, पृ. 19. जैन पूजा-काव्य का उद्भव और विकास :: 41
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy