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________________ 1 सुश्रद्धाममतेमते, स्मृतिरपि त्वय्यर्चनं चापि ते । हस्तांजलये कथा श्रुतिरतः कर्णोऽक्षि सम्प्रेक्षते ॥ सुस्तुत्यांव्यसनं शिरोनतिपरं सेवेदृशी येन मे । तेजस्वी सुजनोऽहमेव सुकृतीतेनैव तेजःपते ॥ भावसौन्दर्य - हे तेजपुंज जिनेन्द्र ! मेरी सुश्रद्धा आपके मत में है, मेरी स्मृति भी आप में लीन है, मैं आपकी ही अर्चना करता हूँ, मेरे हाथ आपके समक्ष अंजलि मुद्रा में हैं, अर्थात् में करबद्ध हूँ। मेरे कर्ण आपकी कथा सुनने में निरत हैं, नेत्र आपका ही दर्शन करते हैं। मुझे आपकी पवित्र स्तति-प्रार्थना ही व्यसनरूप हैं । मेरा मस्तक आपके पवित्र चरणकमलो में नमस्कारतत्पर है। अहो, मेरी इस प्रकार की सेवा हैं कि मैं नेत्र, कर्ण, मन, वचन, काय आदि से आपकी ही भक्ति में निरत हूँ। तो मुझे कहना चाहिए कि में तेजस्वी हैं, भव्यजन हूँ और पुण्यवान् भी आपकी संगति से हूँ । संस्कृत देवशास्त्र गुरु की महती पूजा में भक्तिपूर्वक पूजा का मूल्यांकन ये पूजां जिननाथ शास्त्रयमिनां भक्त्या सदा कुर्वत त्रैमन्ध्यं सुविचित्रकाव्यरचनामुच्चारयन्तो नराः । पुध्याया मुनिराजकीर्तिसहिता भूत्वा तपोभूषणाः ते भव्याः सकलावयोधरुचिरां सिद्धिं लभन्ते पराम् ॥2 1 भावसौन्दर्य - जो पुण्यात्मा मानव प्रातः मध्यकाल और सायंकाल सरस अलंकारपूर्ण अनेक पूजा - काव्यों या पद्यों का उच्चारण करते हुए भक्तिभाव से यथार्थ देव शास्त्र (बाणी) और गुरु की पूजा करते हैं वे भव्यजन मुनिपद धारण कर तपश्चरण से विभूषित एवं केवलज्ञान से समुज्ज्वल होते हुए उत्कृष्ट निर्वाण पद को प्राप्त करते हैं। विद्यमान विंशति तीर्थकरों को प्राकृत जयमाला में भक्ति का मूल्यांकन : प्राकृत में पूजा का मूल्यांकन : ए बीस जिणेसर णनिय सुरेसर, विहरमाण मह संधुणियं । जे भहि 'मगावहि अरु मन भावहिं ते पर पावहिं परमपयं ॥ भावसौन्दर्य - इस प्रकार सुर तथा मानव एवं पशुओं से नमस्कृत इन विद्यमान विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकरों को मैंने (पूजा रचयिता ने) स्तुति पूजन किया है। पूजन 1. श्री एकाद्या विधानन्द जिनपूजा एवं जिनमन्दिर स. पं. नाथूरामशास्त्री प्र. पी. नि. ग्रन्थ प्रकाशन समिति इन्दौर 1952. पृ. 12 * ज्ञानपीठ अलि पु. 3. तथैत्र । जैन पूजा - काव्यों का महत्त्व :: 363
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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