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________________ सर्वविघ्नविनाशक श्री पार्श्वनाथ मन्त्रात्मक स्तोत्र में उपासना का प्रभाव सार सौन्दर्य-जो मानव श्री पाश्वनाथ मन्त्रात्मक स्तोत्र का नित्य जाप करता है, पाठ करता और स्तवन करता है वह आरोग्य एवं ऐश्वर्य से सम्पन्न होता है और उसकी इष्टकार्य की सिद्धि होती है। वह स्तोत्र श्री पार्श्वनाथ के मन्त्राक्षरों से निष्पन्न अनुपम शक्तिवाला हैं, यह स्तांत्र विद्वेष, उच्चाटन, स्तम्भन, जनवशीकरण, पाप रोग आदि को दूर करनेवाला है, क्रुद्ध जंगम (त्रस तथा स्थावर हाथी के भयकर विष को विध्वंस करनेवाला और जीवन की आयु को दीर्घ करनेवाला है अर्थात् निर्विघ्न करनेवाला है। विधानन्द आचार्यकृत आनन्दस्तव' में उपासना का प्रभाव : पूजां प्रकुर्वन्ति नरास्तु भक्त्या, वन्त्रस्य ये श्रीकलिकुण्ड नाम्नः । तेषां नराणामिह सर्वविघ्नाः, नश्वन्त्ववश्यं भुवि तत्प्रसादात् ॥ चित्ताम्बुजे ये स्वमुरूपदेशाद्, ध्यायन्ति नित्यं कलिकुण्डयन्त्रम् । सिंहादयो दुष्टमृगास्तु लोके. पीडां न कुर्वन्ति नृणां च तेषाम् ॥ भावसौन्दर्य-जो मानव भक्ति से श्रीकलिकुण्ड नामक यन्त्र की पूजा करने हैं उस पूजन के प्रभाव से इस लोक में उन मानवों के समस्त विघ्न अवश्य ही नष्ट होते हैं। जो पुरुष अपने गुरु के उपदेश में चितरूपी कमल में विधिपूर्वक नित्य कलिकण्डयन्त्र का ध्यान करते हैं उनके लिए लोक में सिंह आदि दुष्ट जानवर पीड़ा नहीं देते, उनके वश में हो जाते हैं। जैन रक्षास्तोत्र में उपासना का प्रयल प्रभाव : जैन रक्षामिमां भक्त्या, प्रातरून्थाच यः पठेत् । इच्छितान् लभते कामान्, सम्पदश्च पदे पदे ॥ अग्निसर्पभचीत्पाता: भूपालाश्चौरविग्रहांः । एते दोषाः प्रणश्यन्ति, रक्षकाश्च भवन्त्यमी ॥ नरोवापि तथा नारी, शुद्धभावभुतोऽपि सन्। दिनं दिनं तथा कुर्यात, जाप्यं सार्थसिद्धये। एकायां तु विधातव्य, उद्यापनमहोत्सवम् । पूजाविधि-सपायुक्तं, कर्तव्यं सज्जनः जनः । 1. पं. आशा वर : सागर धर्मामृत : सं. पं. देवकीनन्दन शास्त्री, प्र.-दि. जैन पुस्तकालय गांधी चौक, सूरत, वी. सं. पृ. १११ | ५. तथैव, पृ. 260। . तथैव, पृ. 262। 360 :: जैन पूजा काय : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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