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________________ "अरु वंदलं सिरपुरि पासणाहु, जो अंतरिक्त थिन णाणलाह" प्राक्रत निर्वाण-भक्ति की अपेक्षा अपभ्रंश निर्याण भक्ति में एक विशेषता यह है कि इसमें श्रीपुर के जिनदेव पार्श्वनाथ की वन्दना की गयी है जो कि पार्श्वनाथ भगवान अन्तरिक्ष में विराजमान हैं। पार्श्वनाथ मन्दिर और मूर्ति दिगम्बर आम्नाय की है पबली मन्दिर, सिरपुर मन्दिर, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ की मूर्ति तथा इस क्षेत्र की अन्य सभी मूर्तियाँ दिगम्बर जैन आम्नाय की हैं। मन्दिर का निर्माण दिगम्बर जैन धर्मानुयायी ऐल श्रीपाल ने कराया। मूर्तियों के प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचार्य दिगम्बर धर्मानुयायी हैं। मूर्तियों की वीतराग ध्यानावस्था दिगम्बर धर्मसम्मत और उसकी संस्कृति के अनुकूल हैं। अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र का पूजा-काव्य अतिशय क्षेत्र अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ के पूजा-काव्य का सृजन कविवर राजमल पवैया द्वारा भक्ति भाव के साथ किया गया है। इस काव्य में 27 पद्य दो प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। इस काव्य में विविध अलंकार, प्रसाद गुण, सरलरोति के प्रयोग से शान्तरस का सिंचन किया गया है। पठन मात्र से ही अर्थबोध होता है, इस काव्य के कतिपय प्रमुख पद्यों का उद्धरण अन्तरीक्ष प्रभु पार्श्वनाथ को नितप्रति वारंवार प्रणाम शान्त दिगम्बर भव्य मूर्ति जिन प्रतिमा शोभनीय अभिराम । है नासाग्र दृष्टि अति पावन परम पवित्र अपूर्व ललाम अन्तरीक्ष प्रभु सटा विराजिन ध्यान लोन त्रिभुवन में नाम।।' मुक्तागिरि सिद्धक्षेत्र का परिचय एवं पूजा-काव्य श्री मक्तागिरि सिद्धक्षेत्र भारत के मध्यप्रदेशीय बैतल जिले में है। यह विचित्रता है कि मक्तागिरि क्षेत्र यद्यपि मध्यप्रदेश में है किन्तु पास्टल विभाग की दृष्टि से इसका जिला अमरावती (महाराष्ट्र प्रसिद्ध है। ऋष्यद्रिके च विपुलाहिबलाहके च विन्ध्ये च पोदनपुर वृषदीपके च।। 'बोधपाहड़' की शवी गाघा की श्रुतसागरी टीका में भी इस क्षेत्र का नाम मेण्ट्रगिरि दिया गया है। प्राकृत निर्वाग्य भक्ति में भी मेंढागिरि नाम प्राप्त होता है। 1. पूजन दीपिका : सं. राजमल पधा. प्र... मुक्षु मण्डल भोपाल -सन् 194, पृ. 15-22 2. घसंध्यान दीपक : सं. श्री अजितसागर जी. प्र.-जैन ग्रन्थमाला श्री महावीर जी (राज.), सन् 1978. पृ. 189 जैन पूजा-कायों में तीर्थक्षेत्र :- 329
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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