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________________ : शान्तिनाथ : खजुराहो में आ तुमको शीस नवाऊँ जन्म-मरण के नाशकरण को निर्मल नीर चढ़ाॐ ॥ ओं ह्रीं कलातीर्थ खजुराहो संस्थित श्री 1008 शान्तिनाथ जिनेद्वाय जन्म- जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वणमि स्वाहा । ' द्रोणगिरि सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि क्षेत्र मध्यप्रदेशीय छतरपुर मण्डल के अन्तर्गत विशावर तहसील में पर्वत पर अपना अस्तित्व रखता है। 232 सोपानों के माध्यम से पर्वत पर आरोहरण किया जाता है । द्रोणगिरि क्षेत्र प्राप्त करने के लिए मध्य रेलवे के सागर या हरपालपुर स्टेशन पर उपस्थित होना चाहिए। प्रत्येक स्टेशन से लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर यह क्षेत्र शोभित है। सभी स्थानों पर बस की व्यवस्था उपलब्ध है। द्रोणगिरि पर्वत के निकट सेंधपा ग्राम चन्द्रभागा (काठिन) नदी और श्यामली नदी के मध्य क्षेत्र में शोभायमान है। वहाँ पर प्रकृति ने तपोभूमि के उपयुक्त सुषमा का समस्त परिकर एकत्रित कर दिया है जैसे सघन वृक्षावलि, निर्जन प्रदेश, वन्य पशु चन्द्रभागा नदी, जलपूर्ण दो निर्मल कुण्ड, श्यामली नदी ये सब एकत्रित होकर यथार्थ में तपोभूमि की शोभा बढ़ाते हैं। सिद्धक्षेत्र (निर्वाण क्षेत्र) द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र या निर्वाणक्षेत्र हैं। इस विषय में प्राकृत निर्वाणकाण्ड लोन में उल्लेख प्राप्त होता है फलहोडी बड़गाएं, पच्छिम भायम्मि दोणगिरि सिहरे । गुरुदत्तादि मुणिन्दा णिव्याग गया णमो तेसिं ॥ सारांश - फलहोडी बडगाँव के पश्चिम में द्रोणगिरि पर्वत है। उसके शिखर से गुरुदत्त आदि मुनिराज निर्वाण को प्राप्त हुए। उनको मैं नमस्कार करता हूँ। संस्कृत निर्वाण भक्ति में भी द्रोणिमान् क्षेत्र का नाम कहा गया है I द्रोणगिरि क्षेत्र पूजा - काव्य सन् 1986 में पं. गोरेलाल शास्त्री ने द्रोणगिरि पूजा- काव्य की रचना कर क्षेत्र के प्रति अपनी अन्तरंग भाक्त को व्यक्त किया है। इस काव्य के अन्तर्गत 25 पद्य छह प्रकार के छन्दों में निबद्ध किये गये हैं। इस काव्य में प्रसादगुण, रूपकादि - 1. शान्तिनाथ स्वतनम् भाग-1 सं. सुधेश जैन नागद, प्र. अतिशय क्षेत्र खजुराहो प्रबन्ध समिति, खजुराहो, सन् 1947 पृ. 9-22 जैन पूजी कार्यों में तीर्थक्षत्र :: 313
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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