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________________ विशेष राजनीतिक महत्त्व प्राप्त हुआ। जैन कला, इतिहास और पुरातत्त्व की दृष्टि ने इसका गौरवपूर्ण स्थान है । गोपाचल दुर्ग प्राचीन काल में ग्वालियर के अनेक नाम जैन साहित्य में उपलब्ध होते हैं, जैसे गोपाद्रि, गोपगिरि, गोपाचल गोपालाचल, गोचागिरि, गांवालगिरि, गोपाल गिरि, गोपालचल, ग्वालियर ये सब नाम ग्वालियर के दुर्ग के कारण प्रसिद्ध हैं। इस दुर्ग का एक महत्त्वपूर्ण इतिहास है। इतिहासज्ञों का कथन है कि यह दुर्ग प्रायः ईसा से 3000 वर्ष पूर्व का है। कुछ पुरातत्त्वज्ञ इसे ईसा की तृतीय शताब्दी में निर्मित हुआ मानते हैं। इस दुर्ग की गणना भारत के प्राचीन दुर्गों में की जाती है। भट्टारक परम्परा गोपाचल पोट की भहारक परम्परा के भट्टारकों के उपदेश एवं उनके प्रतिष्ठाचार्यत्व के माध्यम से इस दुर्ग के मूर्ति समूह की प्रतिष्ठा योजना सफल हुई। यहाँ के मूर्तिलेखों में अत्रत्व भट्टारक परम्परा इस प्रकार अपना महत्व रखती है " श्रीकाष्ठासं माथुरान्वये भट्टारक श्रीगणकीर्ति देवास्तपट्टे श्रीयशकीर्ति देवास्तत्पट्टे श्रीमलकीर्ति देवास्ततो भट्टारक गुणभद्रदेव ः "" इनमें भट्टारक गुणकीर्ति महाराज, वीरमदेव, गणपतिदेव और डूंगरसिंह के शासनकाल में थे। इन भट्टारक जी के प्रति इन नरेशों की विशेषतः डूंगरसिंह की अत्यन्त भक्ति थी। इन भट्टारक जी के सम्पर्क और उपदेशों के कारण ही हूँगरसिंह की रुचि जैनधर्म की और हो गयी। इन ही को प्रेरणा और प्रभाव के कारण डूंगरसिंह के शासन काल में गोपाचल पर अनेक मृर्तियों का उत्खनन हुआ। इसी प्रकार कीर्तिसिंह के शासन काल में भगवान गुणभद्र के उपदेश से अनेक मूर्तियों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा हुई । उरवाही द्वार के मूर्ति समूह में चन्द्रप्रभ की मूर्ति की प्रतिष्ठा इन्हीं गुणभद्र के उपदेश से हुई थीं। अन्य भी अनेक मूर्तियां इनको प्रेरणा से प्रतिष्ठित को गयीं। भट्टारक महीचन्द्र ने एक पत्थर की बावड़ी के गुफ़ा मन्दिर की प्रतिष्ठा करायी श्री । भट्टारक सिंह कीर्ति ने बावड़ी के मूर्तिसमूह में से पार्श्वनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी । महाराज गणपति सिंह के शासन काल में मूलसंघ नन्दी तटगच्छ कुन्दकुन्द आम्नाय के भट्टारक शुभचन्द्रदेव के मण्डलाचार्य पण्डित भगवत के पुत्र खेमा और धर्मपत्नी खेमादे ने धातुनिर्मित चौबीसी मूर्ति की सं. 1479 वैशाख शुक्ला तृतीया 1. भट्टान् पण्डितान्, अहिंसादिसिद्धान्त निरीक्षणाधं, आयत-प्रेरयति इति भट्टारकः यथा अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय, साधु । सामान्यत्यागी। 302 :: जैन पूजा काव्य एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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