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________________ पूजा सुर नर निरवार कीन, गत ऊँच तनी फल सुफल लीन । भव भरत हम बहु दुःख पाय, पूजें तुम चरणा चित्तलाय ॥ कवि की प्रार्थना अरजी सुन लीजे महर आप नाशो मेरा भव भ्रमण ताप । विनये अधिकी क्या 'कनई लाल', दुख मेट सकल सुख देव हाल ॥ वत्ता छन्द तुम दुख हरता, जग सुख करता भरता शिवांतेय, मांक्षमती । मैं शरणे आयो, तुम गुण गायों, उमगायो ज्यों हती मती || ' गजपन्था क्षेत्र पूजा - काव्य क्षेत्र परिचय बम्बई प्रान्त में जपन्ध नाम का एक प्राचीन तीर्थक्षेत्र है। वह नातिक के बाहरी भाग में शोभायमान हो रहा है। प्राचीन नासिक का उल्लेख भगवती आराधना ग्रन्थ में किया गया है । एवं गजपन्य का उल्लेख पूज्यपाद आचार्य ने स्वरचित संस्कृत निर्वाण भक्ति में किया है और संस्कृत भाषा के असग महाकवि द्वारा रचित 'शान्तिनाथ चरित्र' में भी गजपन्थ का उल्लेख उपलब्ध होता है। पर वह प्राचीन नासिक यही वर्तमान नासिक है यह विषय विचारणीय है। गजपन्थ पर्वत 400 फीट उन्नत लघुकाय एवं रमणीय है । इस पवंत सं बलभद्र आदि सैकड़ों मुनिराज आत्म-साधना कर मुक्तिपद को प्राप्त हुए हैं। इस क्षेत्र की धर्मशाला के नवीन भवन में मान- स्तम्भ सहित जिनमन्दिर हैं। इस मान स्तम्भ को महिलारल ब्र. कंकुबाई जी ने निर्मित कराया था। यहाँ से तीन किलोमीटर दूर गजपन्थ पर्वत है। पर्वत के निकट बंजीबाबा का एक सुन्दर मन्दिर और एक उदासीनाश्रम संचालित है। यहाँ पर ही वाटिका में भट्टारक क्षेमेन्द्र कीर्ति की समाधि बनी हुई हैं। इसी स्थान से ही पर्वत पर चढ़ने का मार्ग प्रारम्भ होता है। इस पर्वत पर 125 सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं। प्रथम ही दो नवीन मनोहर मन्दिर मिलते हैं। एक मन्दिर में श्री पार्श्वनाथ भगवान् को विशालकाय प्रतिमा दर्शनीय है। इन मन्दिरों के पार्श्व में दो प्राचीन गुफ़ा - मन्दिर प्राचीनता को प्रकट करते हैं। ये पहाड़ काटकर बनाये गये हैं। इनमें बारहवीं शती से सोलहवीं शती तक की प्रतिमाएँ और शिल्पकला दर्शनीय है। किन्तु जीर्णोद्धार के कारण मन्दिरों की प्राचीनता नष्ट हो गयी है। प्रतिमाओं पर किये गये 1. महावीर कीर्तन पृ. 7:36-738 (i): न पूजा काव्य एक विन्तन C
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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