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________________ सम्राट् अशोक ने यहीं पर जीवदया के बोधक धर्मलेख पाषाणों पर लिखवायें थे । छत्रप रुद्रसिंह के लेख से व्यक्त होता है कि मौर्यकाल में एवं उसके बाद श्री गिरिनार के प्राचीन मन्दिर आदि स्मारक तूफ़ान से नष्ट-भ्रष्ट हो गये थे। मीर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के गुरु श्री मद्रबाहुस्वामी भी यहाँ पधारे थे। छत्रप रुद्रसिंह ने सम्भवतः डि. मुनियों को तपस्या करने हेतु गुफ़ाएँ बनवायी थीं। चूडासमासवंश के खड्गार नृप ने 10वीं से 16वीं शती तक राज्य किया, जो दिगम्बर जैन था । हिन्दू समाज भी इस गिरनार पर्वत को अपना तीर्थक्षेत्र मानता है। कारण कि इस पर्वत की एक चोटी पर अम्बा देवी का विशाल मन्दिर शोभित है। हिन्दू भाई इसको अम्बा माता की टांक कहकर पूजते हैं। तीसरी टोंक पर श्री नेमिनाथ के चरण चिह्न रमणीय हैं। कुछ अन्तर पर बाबा गोरखनाथ के चरण और मठ हैं, जिनको हिन्दूभाई पूजते हैं। पाँचवीं टोंक पर नेमिनाथ के चरणयुगल एक महिया में बने हुए हैं। पास में ही नेमिनाथ की एक पाषाणमूर्ति है। हिन्दूभाई इस पंचम टोंक को गुरु दत्तात्रेय की तपस्या का क्षेत्र कहते हैं । उसको पूज्य तीर्थक्षेत्र मानते हैं। यह गिरनार पर्वत उन्नत विशाल एवं सुरम्य है। यह प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्वितीय क्रीड्रास्थल है। मन्दिरों सघन निकुंजों, प्राकृतिक झरनों और शीतलवन से लहलहाते हुए हरे-भरे वृक्षों से सघन वनों से इसकी शोभा निराली है। क़रीब ग्यारह हज़ार सीढ़ी पार करने पर इसकी सानन्द वन्दना हो पाती है । ' क्षेत्र की पूजा इस विशाल गगनचुम्बी गिरनार क्षेत्र की पूजा-काव्य माला का निर्माण उन्नीसवीं शती के कविवर रामचन्द्र ने किया है। इस पूजा काव्य में 48 पद्य आठ प्रकार के छन्दों में निबद्ध तथा भावपूर्ण है। प्रकृति एवं अलंकारों की शीतलवर्षा सं भाषेत रस की गंगा हृदयसरोवर से प्रवाहित होती है। यह इस पूजा काव्य का प्रभाव | उदाहरणार्थ इसके कुछ सरस पद्यों का प्रदर्शन है ऊर्जयन्त गिरिनाम तसु कहो जगतविख्यात | गिरिनारी तासों कहत, देखत मन हर्षाति ॥ गिरनार वर्णन गिरि सु उन्नत सुभगाकार है, पंचकूट उत्तंग सधार हैं। वन मनोहर शिला सुहावनी, लखत सुन्दर मन को भावनी ॥ अवरकूट अनेक बने तहाँ सिद्ध यान सु अति सुन्दर जहाँ । देखि भविजन नन हर्षावते, सकल जन बन्दन को आयते ॥ I 1. जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, प्र. दि. जैन परिषद् पब्लि हाऊस, दिल्ली, तृ. सं., पृ. 183-139 282 जैन पूजा काव्य एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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