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________________ कैलाशपर्वत-तीर्थ क्षेत्र का संक्षिप्त परिचय कैलाश पर्वत अति प्राचीन जगत्पूज्य श्रेष्ठ तीर्थक्षेत्र है। स्फटिक मणि की शिलाओं से रमणीय उस कैलाश पर्वत पर आरूढ़ होकर भगवान ऋषभदेव ने एक हजार राजाओं के साथ योग निरोध किया और अन्त में शुक ध्यान के द्वारा चार अघाति कर्मों का क्षय कर, देवों से पूजित होते हुए अनन्त सुख के मुक्ति पद को प्राप्त किया। भरत चक्रवर्ती और वृषभसेन आदि गणधरों ने भी कैलाश पर्वत से ही मोक्षपद प्राप्त किया। श्री माइनानी स्वामी को कैलाश पर्वत निर्माण पद प्राप्त हुआ। अयोध्या के राजा ऋषभदेव के पितामह त्रिदशंजय ने मुनिदीक्षा लेकर तप करते हुए कैलाश से मुक्तिपद प्राप्त किया। कैलाश अपरनाम अष्टापद पर्वत के शिखर से प्याल, महाव्याल, अच्छंद्य और नागकुमार मुनि ने मोक्ष प्राप्त किया। हरिषेण चक्रवर्ती के पुत्र हरिवाहन ने मुनि दीक्षा लेकर इसी पर्वत से निर्वाण प्राप्त किया। अनेक जैनग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि कैलाश पर भरतचक्री तथा अन्य अनेक नृपों ने चौबीस तीर्थंकरों के मन्दिर बनवाकर उनमें रत्नमयी प्रतिमाएँ स्थापित करायीं। भरतचक्री ने चौबीस तीर्थंकरों के जो मन्दिर आर प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की थीं, उनका अस्तित्व चक्रवर्ती के पश्चात् सहस्राब्दियों तक रहा, जैन साहित्य में इसके प्रमाण भी मिलते हैं। द्वितीय चक्रवर्ती सगर के साठ हजार पुत्रों ने अपने पिता जी से कुछ महान कार्य करने की जन्य आज्ञा माँगी, तब सगरचक्री ने विचारपूर्वक आज्ञा दी कि भरतचक्रो ने कैलाश पर्वत पर चौबीस तीर्थंकरों के जो महारलजड़ित चौबीस जिनालय प्रतिष्ठित कराये थे, तुम सय उन पन्दिरों की सुरक्षा के लिए कैलाश के वागें ओर परिखा के रूप में गंगा नदी को बहा हो। पिता की आज्ञा के अनुसार उन राजपुत्रों ने भी दण्डरल से इस महान कार्य को शीघ्र हो पूर्ण कर दिया। कैलाशगिरि तीर्थक्षेत्र पूजा-काव्य विक्रम की बीसवीं शती के कविवर भगवानदास ने कैलाशतीर्थ क्षेत्र पूजा-काव्य का निर्माण किया है। यह क्षेत्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाणक्षेत्र है। आर्यखण्ड के हजारों देशों में विहार कर पानवों को कल्याणमार्ग दर्शाते हुए भगवान् ऋषभदेव कैलाश पर्वत पर स्थिर हुए और परमशुक्ल ध्यान द्वारा शेष दुष्कर्मों का क्षय करते हुए निर्वाणपद को प्राप्त हुए। उसी समय से लोक में कैलाशतीर्थक्षेत्र की पूजा होने लगी। इस काव्य के कुछ भावपूर्ण पद्यों का दिग्दर्शनपूजन के समय कैलाश क्षेत्र की स्थापना श्री कैलाश पहाड़ जगत परधान कहा हे आदिनाथ भगवान जहाँ शिववास लहर है। जैन पूजा-काव्यों में तीर्थक्षेत्र :: ५५
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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