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________________ प्रान्त के हजारीबाग़ जिले में अपनी श्रेष्ठ सत्ता रखता है। यात्रियों को 'पारसनाथ रेलवे स्टेशन' पर उतरकर इंसरी की धर्मशाला में प्रवास करना चाहिए। ईशरी से 22 मि.मी. दूर मधुवन हैं, यह क्षेत्र भी तीर्थ जैसा ही है। प्रथम दि. जैन तेरहपन्थी कोठी में एक उन्नत मानस्तम्भ, तेरह मन्दिर और विशाल नन्दीश्वर द्वीप की रचना है। द्वितीय श्वेताम्बर जैन कोठी में विशाल मन्दिर है। तृतीय दि. जैन बीसपन्थी कोठी में आठ दि, मन्दिर, विशाल समवशरण मन्दिर और एक बाहुबलि मन्दिर है। जैन पूजा-काव्य में तीर्थों का मूल्यांकन : परिचय और अर्चन जैन पूजा-काव्य में इन समस्त तीर्थक्षेत्रों का अर्चन के साथ ही मूल्यांकन किया गया है जिससे पूजा-काव्य की महत्ता तथा व्यापकता सुरीत्या सिद्ध हो जाती है। इन तीर्थक्षेत्रों का अर्चन-वन्दन एवं स्मरण करने से श्रद्धा बलवती होती है, तीर्थंकर महाला मुनीश्वरों के ग का एव जीवन पास का मानहाने से आत्मा में विशुद्धि के साथ-साथ शक्ति का विकास और दुष्कर्मों का क्षय होता है। जैन पूजा-काव्य में अनेक तीर्थक्षेत्रों का पूजन किया गया है। उदाहरणार्थ कुछ पूजा एवं विधान यहाँ प्रस्तुत किये जाते हैंश्री सम्मेदशिखर विधान काव्य यह विधानकाव्य कविवर जबाहरलाल द्वारा उन्नीसवीं शती में रचा गया है। इसमें 83 पद्य पन्द्रह प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। इनमें विविध अलंकारों के द्वारा भक्ति रस एवं शान्तरस उछलता है। उदाहरणार्थ कुछ प्रमुख पद्य प्रस्तुत किये जाते हैं दोहा सिद्धक्षा तीरथ परम, है उत्कृष्ट पहान । शिखरसम्मेद सदा नमों, हाय पाप की हान। अगणित मुनि जहँ ते गये, लोक शिखर के तीर । तिनके पदपंकज नमों, नाशें भव की पीर।। सुन्दरी छन्द सरस उन्नत क्षेत्र प्रधान है, अति सु उज्ज्वल तीर्थ महान है करहिं भक्ति सु जे गुणगायकें, वरहि सुर शिव के सुख जायकें। गीता छन्द सम्मेदगढ़ है तीर्थभारी, सबहिं को उज्ज्वल करे। चिरकाल के जे कर्म लागे, दर्शतें छिन में टरें। जैन पूजा काञ्चों में तीर्थक्षेत्र :: 277
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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