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________________ श्री महावीर निर्वाण पर्व-(दीपावली पर्व) पूजा-काव्य ___तिथि कार्तिक कृष्णा अमावस्या श्री महावीर निर्वाण पर्व की अर्थात् दीपावली पर्व की पावन वेला में यह पूजा समारोह के साथ सम्पन्न की जाती है। इसके पश्चात् शास्त्र प्रवचन होता है। इस पूजा-काव्य के रचयिता का नाम ज्ञात नहीं होता। इसमें दस प्रकार के छन्दोबद्ध पचपन पद्य हैं। अलंकारों की छटा भक्तिरस के साथ शान्तरस को प्रवाहित कर रही है। इस पर्व में आकाशतल एवं पृथ्वीतल पर प्रज्वलित दीपकमाला, झिल-मिल झिल-मिल कान्ति के द्वारा, ज्ञानदीप को प्रज्वलित करने के लिए प्रेरणा देती है। कतिपय प्रभावक पद्य प्रस्तुत : नमो चरमजिन चरणयुग, नाथवंश वर पाय। सिद्धारथ त्रिशला तनुज, हम पर होहु सहाय || पुष्पोत्तर तजि वान धवल छठ षाढ़ की उत्तर फाल्गुन नखत बसे उर माय की। अवधि विधपत्ति जान रतन वरसाइयो कुण्डलपुर हरि आय सुमंगल गाइयो । पंचानन पग चिह तिन, तर उतंग कर सात । वरण हेम प्रतिविम्ब जिन पलऊँ भव्य प्रभात || श्रीदशलक्षण पर्व-महामण्डल-विधान जैनदर्शन में विशेष (विस्तारपूर्ण) पूजा को विधान कहते हैं। ये विधान मण्डल (गुणों का रेखाकार चित्र) को सामने बनाकर किये जाते हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी पर्यन्त दश दिनों तक यह दशलक्षण महामण्डल-विधान किया जाता है। कविवर टेकचन्द्र जी द्वारा इस विधान की रचना की गयी है। इस विधान में सम्पूर्ण 109 पद्य अठारह प्रकार के छन्दों में निबद्ध हैं। इनमें प्रयुक्त अलंकारों की छटा से शान्तरस एवं भक्ति रस घटित होता है जिससे पूजा-काव्य आनन्दप्रद सिद्ध होता है। उदाहरणार्थ भावपूर्ण सरस पद्य : धर्म के दश कह लक्षण, तिन थकी जिय सुख लहै, भवरोग की यह महा आषधि, मरण जामन देख दहे। यह वरत नीका पोत जो का, करो आदरतें सही, मैं जजों दशक्धि धर्म के अंग. तासु फल है शिवमही । या बरत मनकांपे गले माही, साँकली सम जानिए, गज अक्ष जीतन सिंह जैसी, मोहतम रवि मानिए । जैन पूजा-काव्यों में पत्र :: 21
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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