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________________ प्रतिष्ठा तथा विधान (विशेष पूजा) शब्द भी साहित्य में बहुत प्रसिद्ध हैं और लोक-व्यवहार में भी प्रयुक्त होते हैं जैसे पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, वेदी प्रतिष्ठा, सिद्धचक्रविधान, इन्द्रध्वज विधान आदि। ___ पूजा (उपासना) के विशेष स्वरूप को समझने के लिए (1) पूज्य, (2) पूजक, (3) पूजा, (4) पूजाफल-इन चार तत्त्वों पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए। (1) प्रथम यह ज्ञान करना आवश्यक है कि पूज्य आत्मा की पूजा कैसे करनी चाहिए? इस प्रश्न के उत्तर में जैनशास्त्रों में कथन है आप्तेनोच्छिन्नदोषेण सर्वज्ञेनागमेशिना। मायतथ्य नियोगेन मान्यबा त्याप्तता भवत्।। सारांश-जो आत्मा अठारह दोपों से रहित वीतरागी हो, विश्व के सम्पूर्ण पदार्थों का ज्ञाता (सर्वज्ञ) हो और जो हितोपदेशी हो वही अर्हन्त परमात्मा पूज्य है। अठारह दोष इस प्रकार हैं-जन्म, जरा, परण, क्षुधा, तृषा (प्यास), रोग, भय, मद, राग, द्वेप, मोह, चिन्ता, अरति, निद्रा, विस्मय, विषाद, प्रस्वेद, दुःख। अथवा- भवबीजांकुरजनमा रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य। ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो जिनो था नमस्तस्मै॥' यो विश्वं वेद वेद्यं जनन जलनिधेर-भगिनः पारदृश्वा। पौर्यापर्याविरुद्धं वचनमनुपम निष्कलङ्क यदीयम्।। तं वन्दे साधुवन्धं सकलगुणनिधि ध्वस्त-दोष-द्विषन्तं बुद्ध वा वर्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा॥ संसार के जन्म-मरण आदि दुःखों को बढ़ानेवाले राग-द्वेष, मोह आदि दोष जिनके पृथक् हो गये हों उस पुज्य आत्मा को नमस्कार है-चाहे वह आत्मा ब्रह्मा हो, अथवा विष्णु हो, अथवा महेश हो, अथवा जिनेन्द्र हो। सारांश यह है कि जो आत्मा वीतरागी सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो वह परमात्मा पुज्य है। पूजक का स्वरूप इल प्रश्न के उत्तर में वही कहा गया है कि जो सदाचारी परोपकारी श्रद्धालु, विनयी, पूजन के फल को चाह न करनेवाला. क्रोध तथा मायाचार न करनेवाला, दुर्व्यसन का त्यागी, चायपूर्वक जीविका करनेवाला. उत्साही, सुशील, ज्ञानवान, 1. आचायं समन्तभद्र : रत्नकरण्ड धारकाना : सं.पं. पन्नालाल साहित्याचायं : प्र. वीरसेत्रा मन्दिर ट्रस्ट, सन् 1972, श्लोक 5. 2. सुधापितरस्म भाण्डागार : सं. काशीनाथ शना : प्र. निणयसागर प्रेस वसई : रसन 1905 : पृ. 1. श्लोक-9. 3. अकलंक स्तोत्र : स्तोत्रपूजापाठ संग्रह, परनगंज किशनगढ़ 1976, पृ. 249. जैन पूजा काव्य का उद्भव और विकास :: 25
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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