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________________ माइ का ण ार जे तक गये हरषे इन्द्र अपार मेरु पर ले गये। पूजा कर निज धन्य लखो बहु चाव सों हम हूँ षोडश कारण भाचे भाव सौं॥ इस पद्य में चान्द्रायण छन्द और स्वभावोक्ति अलंकार शोभित हैं। जल अर्पण करने का पद्य-- कंचनझारी निर्मल नीर, पूजों जिनवर गुणगंभीर । परम गुरु हो, जय जय नाथ परमगुरु हो। दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकरपद पाय, परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो।' श्रीकलिकुण्डपाश्वनाथ पूजा कलिकुण्डयन्त्र की स्थापना कर भगवान पार्श्वनाथ का पूजन किया जाता है इसलिए इस पूजा को श्रीकलिकुण्ड पार्श्वनाथ पूजा के नाम से कहते हैं। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है। इस पूजा में विविध छन्दों में रचित कुल 35 पय हैं। उदाहरणार्थ इस पूजा की स्थापना का पद्य इस प्रकार है है महिमा को थान शुद्धवर, यन्त्र कलीकुण्ड जानो। डाकिन शाकिन अगनि चोर भय, नाशन सब दुख खानो। नवग्रह का सब दुःखविनाशक, रवि शनि आदि पिछानो तिसका मैं स्थापन कर हूँ, विविध योग कर लानो॥ इस पद्य में जोगीरासा छन्द द्वारा भक्तिरस की मधुर धारा प्रवाहित हैं। जल अर्पण करने का पध गंगा को नीरं, अति हो शीरं, गन्धगहीरं मेल सही, भर कंचर झारी, आनन्द थारी, धार करों मन प्रीति लाही। कलि कण्डसयन्त्र, पढ़कर मन्त्र, ध्यावत जे भविजन ज्ञानी । सब विपति विनाशै, सुखपरकाशै, होवे मंगल सुखदानी।। त्रिभंगी जैसे मनोहर छन्द में रचित यह पद्य भक्ति रस की वर्षा करता है। श्री महावीर तीर्थंकर पूजा कविवर श्री वृन्दावन ने भगवान महावीर पूजन की रचना की है। आपने अनेक 1, जिन्द्रमणिपाला, पृ. 185-193 2. जिनन्द्रमाणमाला, पृ. 217-272 हिन्दी जैन पूजा काव्यों में छन्द, रस, अलंकार :: 207
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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