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________________ . .- -. - - . सर्वोषट् । अत्र तिष्ट लिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ॥ इस पद्य में स्वभावोक्ति अलंकार के द्वारा शान्तरस का अनुभव प्राप्त हो . . . - . .. जलद्रव्य अर्पण करने का पद्य : निर्मलैः सुशीतलैः महापगाभवैः वनैः शातकुंभकुंभगैः जगज्जनांगतापः। देव देव पाश्र्वनाथ श्रीकल्याणपंचकम् स्वर्ग मोक्षसम्पदानुभूतिकारणं यजे ॥ इस पद्य में जल द्रव्य तथा भगवान पार्श्वनाथ और उनके पंचकल्याणकों क वर्णन अनेक विशेषणों के साथ किया गया है। स्वभावोक्ति, रूपक, अनुप्राप्त इन अलंकारों से अलंकृत भक्ति रस मानस कमल को प्रफुल्लित करता है। मन्त्र-ओं ह्रीं श्रीं, अई श्रीचिन्तामणिपाश्वनाथाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपापीति स्वाहा ॥ इस पूजा की जयमाला में संस्कृत के पद्यों में बहुत कठिन तथा संयोगी पद हैं, पद्य के चरणों में बीजाक्षरमन्त्रों का भी समावेश है। उदाहरणार्थ जयमाला भाग का दूसरा पध इस प्रकार है : हां ही हूँ ही विभास्वन्मरकतमणिमाक्रान्तमूर्तेः हि वं. मं, हे सं तं बीजमन्त्रैः कृतसकलजगत् श्येमरक्षोरुवक्षः।। क्षा भी ा क्षैः समस्तक्षितितलमहित ज्योतिसयोतितार्थः । आं क्षैः क्षों सौं क्षिप्तबीजात्मकसकलतनुः नः सदा पार्श्वनाथः ॥ इस पद्य में यह पावना की गयी है कि अनेक मन्त्रों से विभूषित अयवा अनेक मन्त्रमय शरोरवाले श्री चिन्तामणि पाश्वनाथ देव हम सबकी रक्षा करें। इसी प्रकार जयमाला के सर्व ही नौपद्य कठिन पद तथा मन्त्रों से भरे हुए हैं। अनादिसिद्धयन्त्र पूजा इस पूजा में किसी भी तीथकर या अरहन्त का पूजन नहीं किया गया है किन्तु तीर्थंकर या अरहन्तदेव के प्रतिनिधि रूप सिद्धयन्न का पूजन किया गया है। चौकोर-गोल-त्रिकोण आकारवाले ताम्र-पीतत-सुवर्ण आदि धातु के बने पट्टे पर, बीजमन्न सहित जो देवों के नाम उत्कीर्ण किये जाते हैं उसे यन्त्र कहते हैं, उस यन्त्र के विषय के अनुसार भिन्न भिन्न नाम होते हैं। इस यन्त्र का नाम सिद्धयन्त्र हैं, इसमें बीजाक्षरमन्त्रों के साथ सत्रह वीतरागदेवों के नाम उस्कोर्ण किये जाते हैं, वे इस प्रकार हैं : 17ti :: जैन पूजा कारा . एक नितिन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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