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________________ सन्निधिकरण का तृतीय श्लोक उदाहरणार्थ प्रस्तुत किया जाता है जो भक्तिरस एवं अलंकार से अलंकृत है। देवि श्रीश्रृतदेवते भगवति त्वत्पादपंकेरुह ! द्वन्द्वे यामि शिलीमुखत्वमपरं भक्त्या मया प्रार्थ्यते । मातश्चेतसि तिष्ट मे जिनमुखोद्भूते सदा त्राहि माम् दृग्दानेन मयि प्रसीद भवती सम्पूजयामोऽधुना ॥' इस श्लोक में रूपकालंकार तथा उपमालंकार की पुट देकर भक्तिरस को प्रवाहित किया गया है। जिस मनोहर श्लोक को पढ़कर अक्षतद्रव्य (अखण्डचावल) अर्पित किया जाता है उस श्लोक को गम्भीर अर्थ के साथ अनुभव में लाएँ : अपारसंसारमहासमुद्र प्रोत्तारणे प्राज्यतरीन् सुभक्त्या। दीर्घाक्षतांगैः धवलाक्षतोषैः, जिनेन्द्रसिद्धान्तयतीन्यजेहम् ॥ पूजन पाठ द्रव्यों से किया गया है, आशीर्वाद पुष्पांजलि के बाद अर्हन्तदेव के गुणों का कीर्तन करनेवाली प्राकृत जयमाला है जिसमें आठ छन्द शोभित हैं। उनमें से प्रथम पद्य को भावसौन्दर्य के साथ देखिए : वत्ताणुट्ठावें जणु धणदाणे पई पोसिउ तुई खत्तधरु। तवचरणविहाणे केवलणाणे तुहं परमप्पउ परमपरु । इस गाथा में तीर्थंकर ऋषभदेव की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। उन्होंने छह धार्मिक तथा कृषि आदि छह लौकिक कर्मों का उपदेश दिया। बहत्तर कलाओं का आविष्कार किया। राज्य संचालन किया। बाद में दीक्षा लेकर तप किया और परमात्मपद को प्राप्त किया। देव की जयमाला के बाद शास्त्र (सरस्वती) की जयमाला भी प्राकृत भाषा में निबद्ध है। इसमें श्रुतज्ञान के अंग तथा अनुयोगों का वर्णन है। इसमें तेरह सुन्दर गाथाएं हैं। उदाहरणार्थ इस जयमाला की प्रथम गाथा भावसौन्दर्य के साथ उद्धत की जाती है : खंपइसुहकारण कम्मवियारण्य, मवसमुद्घ तारणतरणं। जिनवाणि मस्समि सत्ति पयासमि, सम्ग मोक्खसंगमकरणं ॥ जिनवाणी की जयमाला के पश्चात् कयि ने सद्गुरु की जबमाला को भी प्राकृत भाषा में निबद्ध किया है। इसकी तेरह गाथाओं में आचार्य, उपाध्याय साधु के गुणों का वर्णन किया गया है। श्रेष्ट गुरुओं का महत्व समझने के लिए जयमाला 1. ज्ञानपीट पूजांजलि : सम्पा. पं. फूलचन्द्र जी सि. शा., डॉ. उपाध्य, पृ. 37, प्रका-भारतीय ज्ञानपीठ, नवी दिल्ली, 1977 ई.। रांस्कृत और प्राकृत जैन पूजा-काव्यों में छन्द... :: 167
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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