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________________ हुए महान् पूज्य अतिथि जिनदेव का पहले अभिषेक करते हैं, पश्चात् पूजन विधान करते हैं। जिस प्रकार किसी राजपुत्र का प्रथम अभिषेक किया जाता है पश्चात् तिलककरण, राज्य प्रदान आदि रूप से उसका आदर-सत्कार होता है, उसी प्रकार त्रिलोक के राजपुत्र अर्हन्तदेव का प्रथम अभिषेक होता है, पश्चात् पूजा (सत्कार) होता है इत्यादि हेतु एवं युक्तियों से अभिषेक एक वैज्ञानिक क्रिया भी सिद्ध होती है। इस क्रिया में एक वैज्ञानिक युक्ति यह भी है कि अभिषेक से प्रतिमा की मलिनता दूर होने से द्रव्यशुद्धि (बाह्य शुद्धि) और हम पूजकों की भावशुद्धि होती है इसलिए अभिषेक द्रव्यशुद्धि एवं भावशुद्धि का निमित्त कारण है, इसको प्रयोजन शून्य नहीं कहा जा सकता है। आचार्य पूज्यपाद ने संस्कृत भक्तियों में और श्री कुन्दकुन्द आचार्य ने दश प्राकृत भक्तियों में नन्दीश्वर भक्ति का निर्देश किया है। उसके अन्त में प्राकृत आलोचनारूप गद्यपाठ में अभिषेक तथा अष्टद्रव्यों से पूजन का विधान है, तद्यथा : "दिव्वेहिं वासेहि, दिव्वेहिं पहाणेहि आसाढ कत्तियफागुण मासाणं... इत्यादि ।" सारांश-चारों प्रकार के देव नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यालय में स्थित प्रतिमाओं का, कार्तिक-फाल्गुन और आषाढ़ मास के अन्तिम आठ दिनों में, दिव्य अभिषेक के द्वारा तथा दिव्यगन्ध आदि द्रव्यों के द्वारा पूजन करते हैं वन्दना करते हैं, नमस्कार करते हैं, और भावना करते हैं कि हे भगवन् ! दुःखों का क्षय हो, कर्मों का क्षय हो और गुणसम्पत्ति प्राप्त हो। "भेदेनवर्णना का, सौधर्मः स्नपनकर्तृतामापन्नः। परिचारकभावमिताः, शेषेन्द्राश्चन्द्रनिर्मलयशमः ॥ सारांश-नन्दीश्वर द्वीप का विशेष वर्णन क्या किया जाए, संक्षेप से यही कहा जा सकता है कि सौधर्म स्वर्ग का प्रधान इन्द्र स्वयं नन्दीश्वर द्वीप की प्रतिमाओं का अभिषेक करता है, शेष स्वर्गों के यशस्वी इन्द्र, उस प्रधान इन्द्र के परिचारक बनकर अभिषेक में सहयोग करते हैं। 'त्रिलोकसार' में श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने अकृत्रिमजिन चैत्यालयों का वर्णन करते हुए कहा है : सम्पा. श्री अजितसागर जो पहाराज, प्रका. श्रीमहावीर जी प्र. ।. धर्पध्यानदीपक, पृष्ठ । सस्करण। ५. धर्मध्यानटीपक, पृ. 1Hb | संस्कृत और प्राकृत जन पूजा-काव्यों में छन्द... ::11
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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