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________________ अन्त में पढ़ी जाती है। इस पाठ में अरहन्त भगवान् सिद्ध परमात्मा आचार्य, उपाध्याय, श्रेष्ठ साधु-इन पंच महात्माओं को गुण-कीर्तन के साथ नमस्कार किया गया है। आठवें काव्य में मंगलकामना की गयी है अर्हत्सिद्धाचायोपाध्यायाः सर्वसाधवः । कुर्वन्तु मंगलाः सर्वे, निर्वाणपरमश्रियम् ।।' अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-ये पंच परमेष्ठी महात्मा मंगलरूप और मंगलकारक हैं अतः ये सब ही हमको मोक्षलक्ष्मी प्रदान करें। अर्हदुद्भक्ति या ईर्यापथभक्तिकाव्य- इस भक्तिकाव्य के आदि के सत्रह काव्यों में अर्हन्तभगवान् की स्तुति की गयी है और पश्चात् छह काव्यों में ईर्यापद्मभक्ति (गमन आदि क्रिया के द्वारा होनेवाली जीवहिंसा की आलोचना) का वर्णन किया गया है। मध्य में प्राकृत भाषा में रचित तीन विनयगद्यकाव्य हैं। सबसे अन्त में प्राकृत के आठ आर्याछन्द हैं जिनमें चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है । इस भक्तिकाव्य में विभिन्न छन्दों में निबद्ध संस्कृत श्लोक हैं जिनमें कई अलंकारों की छटा से भक्तिरस झलकता है। उदाहरण के लिए पंचकाव्य प्रस्तुत किया जाता है, इसका काव्य सौन्दर्य ध्यान देने योग्य है अद्याभवत्सफलतानयनद्वयस्य देवत्वदीयचरणाम्बुजवीक्षणेन । अद्यत्रिलोकतिलक प्रतिभासते मे, संसारवारिधिरयं चुलुकप्रमाणम्॥ हे त्रिलोकतिलक देव! आज आपके चरणकमल के दर्शन से मेरे दोनों नेत्र सफल हुए हैं और आज यह संसाररूपी समुद्र मेरे लिए चुल्लू भर पानी के समान जान पड़ता हैं । यह देवदर्शन का महत्त्व कहा गया है। यहाँ वसन्ततिलका छन्द में रूपकालंकार एवं अतिशयोक्ति अलंकार के प्रयोग से शान्तरस की पुष्टि होती है। इसी प्रकार छठाकाव्य देखें | अथ मे क्षालितं गात्रं, नेत्रे च विमलीकृते । स्नातोहं धर्मतीर्थेषु जिनेन्द्र तव दर्शनात् ॥ हे जिनेन्द्रदेव! आज आपके दर्शन से मेरा शरीर पवित्र हो गया है, मेरे दोनों नेत्र निर्मल हो गये हैं और आज मैंने धर्मरूपी तीर्थ में स्नान करने का अनुभव कर लिया है। शान्तिभक्तिकाव्य- - इस भक्तिकाव्य में शार्दूलविक्रीडित छन्द में रचित आठ श्लोक, दोधक छन्दबद्ध में चार श्लोक, वसन्ततिलका छन्द रचित एक श्लोक, उपजाति छन्दबद्ध एक श्लोक और सुग्धराछन्दबद्ध एक श्लोक - इस प्रकार कुल 1. धर्मध्यान प्रकाश, पृ.69 ४. तथैव पू. 138 जैन पूजा-काव्य : एक चिन्तन
SR No.090200
Book TitleJain Pooja Kavya Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size7 MB
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