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वर्धमान पर्यन्त चौबीस तीर्थंकर हमारे लिए सिद्धि प्रदान करें। इस मंगलकाव्य में आर्याछन्द और उपमा अलंकार झलकता है।
इस प्रकार प्राकृत भाषा में सैकड़ों मंगलकाव्य हैं, प्राकृत भाषा देश की प्राचीन एवं प्राकृतिक भाषा है जो कहने में सरल-सुन्दर ज्ञात होती है। प्राकृत मंगलकाव्यों का पठन करना भी मानव को आवश्यक है।
हिन्दी में जैन मंगलकाव्य
जिस प्रकार जैनदर्शन में संस्कृत तथा प्राकृत मंगलकाव्यों की अधिकता देखी जाती है उसी प्रकार हिन्दी भाषा के मंगलकाव्य भी प्रचुरसंख्या में विद्यमान हैं जिनके स्मरण से मानव अपना कल्याण करते हैं। उदाहरणार्थ कुछ हिन्दी में मंगलकाव्यों का दर्शन कराया जाता है
चौपाई छन्द
ओंकारध्वनिसार, द्वादशांगवाणी विमल । नमो भक्तिर झाड़ता ह मंगलमय मंगलकरन वीतराग विज्ञान । नमों ताहि जाते भये, अरहन्तादि महान ! " धर्म ही उत्कृष्टमंगल हैं सतत संसार में धर्म ही अवलम्ब हे भवसिन्धु पारावार में । धर्ममयनित बुद्धि हो यह कामना करते रहें धर्मनिधि धर्माचरण द्वारा सदा भरते रहें ।"
ओंकार सब अक्षरसारा, पंचपरमेष्ठी तीर्थ अपारा। ओंकार ध्यावे त्रैलोका, ब्रह्माविष्णु महेश्वर लोका ॥ ओंकार ध्वनि जगम अपारा, बावन अक्षर गर्भित सारा । चारों वेद शक्ति है जाकी, ताकी महिमा जगत्प्रकाशी ॥ ओंकार घटघट परवेशा ध्यावत ब्रह्मा विष्णु महेशा । नमस्कार ताको नित कीलें, निर्मल होय परमरस पीजै ॥ *
1. कवि द्यान्तरायकृत |
2. पण्डितप्रवर टोडरमल ।
3. पं. अजितकुमार शास्त्री
4. तारणतरणजिनवाणी संग्रह सं. पं. चम्पालाल जैन- तारणतरण ट्रस्ट, सागर, प्र. संस्करण 1980,
पृ. 9
130 जैन पूजा-काव्य एक चिन्तन