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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ ५२ दक्षिण की ओर चलते चलते जब वे कलबप्पू या कटवत्र गिरि पर पहुँचे, तब उन्हें अपनी आयु के अन्त समय का आभास हुआ, तब उन्होंने सब को विशाखाचार्य के नेतृत्व में आगे जाने का निर्देश किया, और वे वहीं रह गए। चन्द्रगुप्त भी उन्हीं के साथ रहा। भद्रबाहु ने समाधि ले ली और उसी पर्वत की गुफा में समभावों से दिवंगत हुए । चन्द्रगुप्त ने जिनका दीक्षा नाम प्रभाचन्द्र लेख में उल्लिखित है, उन्होंने भद्रबाहु की वैयावृत्य को, और उनके निर्देशानुसार ही सब कार्य सम्पन्न किये। किन्तु जो साधु श्रावकों के अनुरोधवश उत्तर भारत में ही रह गए थे, उन्हें दुभिक्ष की भीषण परिस्थितिवश वस्त्रादि को स्वीकार करना पड़ा, और मुनि प्रचार के विरुद्ध प्रवृत्ति करनी पड़ी। यह शिथिल प्रवृत्ति हो जागे जाकर सबभेद में सहायक होती हुई श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति का कारण वनी । जब बारह वर्ष का दुर्भिक्ष समाप्त हुआ और लोक में सुभिक्ष हो गया, तब जो संघ दक्षिण की ओर गया था, वह विशाखाचार्य के साथ दक्षिणापथ से मध्यदेश में लौटकर आया । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार भद्रबाहु उस समय नेपाल की तराई में थे, और वह १२ वर्ष की तपस्या 'विशेष में निरत थे। महाप्राण नामक ध्यान में संलग्न थे । साधु संघ ने उन्हें पटना बुलाया, किन्तु वे नहीं आये, जिससे उन्हें संघ बाह्य करने को धमकी दी गई और किसी तरह उन्हें पढ़ाने के लिये राजी कर लिया गया । स्थूलभद्र ने उन्हीं से पूर्वों का ज्ञान प्राप्त किया ।" यदि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के इस कथन को सत्य मान लिया जाय तो भी श्वेताम्बर सम्प्रदाय को अपनी परम्परा स्थूलभद्र से माननी होगी। दूसरे भद्रबाहु का पटना वाचना में सम्मिलित न होना, ये दोनों बाते उस समय जैन संघ में किसी बड़े भारी विस्फोट की ओर संकेत करती हैं। और भद्रबाहु के वाचना में शामिल न होने से वह समस्त जैन संघ की न होकर एकान्तिक कही जायगी। वह बाचार-विचार शैथिल्य वाले उन कुछ साधुओं की होगी । अतः उसे अखिल जैन संघ का प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो सकता। यहाँ यह भी विचारणीय है कि जब भद्रबाहु के काल में प्रथम वाचना पटना में हुई, तब उसी समय श्रुत को पुस्तकारूढ़ कर संरक्षित क्यों नहीं किया गया ? घटनाकम से ज्ञात होता है कि उस समय श्राचार-विचार थिल्य वाले सच के भीतर बड़ा मत-भेद रहा होगा। एक दल कहता होगा कि संघ भेद की स्थिति में अग साहित्य में परिवर्तन इष्ट नहीं है । यदि उस समय श्वेताम्बर श्रग साहित्य संकलित कर पुस्तकारूढ़ किया जाता तो संभव है उसका वर्तमान रूप कुछ और ही होता । दक्षिण से जब सध लौट कर आया, तब उन्होंने यहाँ रह जाने वाले साधुओं के शिथिलाचार को देख कर चहुत दुःख व्यक्त किया, उन्हें समझाया और कहा कि थाप लोगों को दुर्भिक्ष की परिस्थितिवश जो विपरीत श्राचरण करना पड़ा, ग्रथ उसका परित्याग कर दीजिये और प्रायश्चित्त लेकर बीर शासन के प्राचार का यथार्थ रूप में पालन कीजिये, जिससे जैन श्रमणों की महत्ता बराबर बनी रहे। किन्तु श्राचार और विचार थिल्य बाले उन साधुओं ने इसे स्वीकार नहीं किया; क्योंकि मध्यम मार्ग में जो सुख-सुविधा उन्हें १२ वर्ष तक दुर्भिक्ष के समय मिली, वह उन्हें कठोर मार्ग का आचरण करने से कैसे मिल सकती थी। दूसरे उस समय देश में बौद्धों के मध्यम मार्ग का प्रचार एवं प्रसार हो रहा था – वे वस्त्र पात्रादि के साथ बौद्ध धर्म का अनुसरण कर रहे थे। उसका प्रभाव भी उन पर पड़ा होगा ऐसा लगता है। आचार और वैचारिक शिथिलता ने उन्हें मध्यम मार्ग में रहने के लिए बाध्य किया। यदि उन्हें वस्त्र पात्रादि रखने का कदाग्रह न होता, तो वे प्रायश्चित्त लेकर अपने पूर्ववर्ती मुनि धर्म पर आरूढ़ हो जाते । पर दथित्य प्रवृत्ति के संयोजक स्थूलभद्र जैसे साधु उस मार्ग को कैसे स्वीकार कर सकते थे ? ये दोनों ही साधन संघ भेद-परम्परा के जनक हैं। ग्राचार दशैथिल्य ने साधुओं को वस्त्र और पात्र आदि रखने के लिये विवश किया और विचार शैथिल्य ने अपने अनुकूल सैद्धान्तिक विचारों में कान्ति लाने में सहयोग दिया। वे उसे पुष्ट करने के लिए ठोस आधार ढूंढ़ने का प्रयत्न करने लगे, क्योंकि शिथिलाचार को पुष्ट करने के लिए उन्हें उसकी महती आवश्यकता थी । इसीलिए उन्होंने खूब सोच-विचार के साथ बौद्धों के अनुसरण पर पाटलिपुत्र (पटना) १. देखो, परिशिष्ट पर्व सर्ग ६ श्लोक ७२ से ११० पृ० ८६ २. सफेल दल के भीतर तीव्र मदभेद की बात प्रज्ञाचक्षु, पं० सुखलाल जी भी स्वीकार करते हैं। मथुरा के बाद वलभी में 'पुनः श्रुत संस्कार हुआ, जिसमें स्थविर या सचल दल का रहा सहा मतभेद भी नाम शेष हो गया । --तत्त्वार्थ सूत्र प्रस्तावना पृ० ३०
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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