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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-माग २
लिए आचार्य अमृतचन्द्र के समय सार कायद्यों की हावा लिपी यो । उहीका के अध्ययन से अनेक लोग अध्यात्मरस का पान करने को समर्थ हो सके हैं। आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली था, और उनके चित्त में जन कल्याण की भावना सदा जागृत रहती थी। उन्होंने अनेक स्थानों पर विहार कर जनता को कल्याणमार्ग का उपदेश दिया था। खासकर राजस्थान के मारवाड़ और मेवाड़ देश में विहार कर जनकल्याण करते हुए यश और प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। उनका विशुद्ध परिणाम और सर्वोपकारिणी बुद्धि इन दोनों गुणों का एकत्र सम्मेलन उनके बौद्धिक जीवन की विशेषता थी । इन्हीं से साहित्य संसार में उनके यश सौरभ का विस्तार हो रहा था। उनकी अध्यात्मकमल मार्तण्ड और पंचाध्यायी कृतियां उनके प्रध्यात्मानुभव और स्याहादसरणी की निर्देशक हैं। वे जहाँ जाते वहाँ उनका स्वागत होता था।
उन्हें प्रागरा में शाहजहाँ के राज्यकाल में कुछ समय रहने का अवसर मिला है। उन्होंने शाहजहाँ को नजदीक से देखा है। और जम्बूस्वामी चरित में उसकी विशेषताओं का दिग्दर्शन भी कराया है। गुजरात विजय का वर्णन करते हए लिखा है। उसने 'जजियाकर छोड़ दिया था और शराब भी बन्द कर दी थी।
"मुमोच शुल्कं त्वय जेजियाभिषं, स यावदंभोषर भूधराधरं ॥" २७ "प्रमादमावायजः प्रवर्तते फुधर्मवमेष यतः प्रमतवीः। ततोऽपि मद्यं तववद्यकारणं निवारयामास विद्याबरः सहि ।।" २६
-जंबू स्वामिचरित उस समय प्रागरा में प्रकबर बादशाह के खास अधिकारी कृष्णामंगल चौधरी नाम के क्षत्रिय थे, जो ठाकूर और मरजानी पुत्र भी कहलाते थे और इन्द्रश्री को प्राप्त थे। उनके प्रागे 'गढमल्लसाह' नाम के एक वैष्णव धर्माबलम्बी दूसरे अधिकारी थे, जो बड़े परोपकारी थे। कवि ने उन्हें परोपकारार्थ शाश्वती लक्ष्मी प्राप्त करने का पाशीर्वाद दिया है। जम्बू स्वामी चरित की रचना कराने वाले साहू टोडर उन दोनों के खास प्रीतिपात्र थे, उन्हें कवि ने टकसाल के कार्य में दक्ष बतलाया है :
"तयोईयोः प्रीतिरसामृतात्मक सभातिनानाटकसार बक्षकः ।" साहू टोडर भटानिकोल (अलीगढ़) के निवासी अग्रवाल थे, इनका मोत्र गर्ग था। यह काष्ठा संघी भट्टारक कुमारसेन की प्राम्नाय के श्रेष्ठी थे। कवि ने इन्हीं कुमारसेन के पट्ट पर क्रमशः हेमचन्द्र, पद्मनन्दी, यशःकोति और क्षेमकीति का प्रतिष्ठित होना लिखा है।
कवि राजमल्ल की निम्न कृतियाँ उपलब्ध हैं-जम्बू स्वामी चरित्र, अध्यात्म-कमल मार्तण्ड, समयसारकलशटीका, लाटी संहिता, छन्दोविद्या सौर पंचाध्यायी। रचना-परिचय
जम्बस्वामी चरित्र--इसमें अन्तिम केवली जम्बू स्वामी के चरित्र का अंकन किया गया है । इस काव्य में १३ सर्ग और २४०० के लगभग श्लोक हैं। इस ग्रन्थ की रचना कवि ने आगरे में की है, अत: प्रागरे का वर्णन करना स्वाभाविक है। वहाँ के शासक शाहजहाँ का अच्छा वर्णन किया है और उसके कार्यों को प्रशंसा भो को है। काव्यवैराग्य प्रधान है । कहीं पर युद्ध का वर्णन करते हए बीर रस पा गया है, कहीं धर्मशास्त्र और नीति का वर्णन है। जम्बूकूमार के साथ उनकी स्त्रियों और विद्यच्चर के जो संवाद हुए हैं वे बहत ही रोचक हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्व के हैं । इस ग्रन्थ की रचना साहू टोडर के अनुरोध से हुई है जिसने प्रचुर द्रव्य व्यय करके मथुरा में ५१४ स्तपों का जीर्णोद्धार किया था। और उनकी प्रतिष्ठा चतुर्विध संघ के समक्ष ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में द्वादशी बुधवार के दिन की थी। प्रतिष्ठादि कार्य राजमल्ल द्वारा सम्पन्न हया था। इस ग्रन्थ को रचना कवि ने सं० १६३२ में
२. संवत्सरे गताब्दानां पतानां षोडकमात्, शुद्धस्त्रिंशद्भिरब्दश्च साधिक दधति स्फुटम् ११६ शुभे ज्येष्ठे महामासे शुक्ल पक्षे महोदये, द्वादश्यां बुधबारे स्थाघटीनां च नवोपरि, ।
-बंदू स्वामि चरित्र १.११६ २०