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१५, १६, १७वी और १८वीं शताब्दी के आचार्य, मट्टारक श्रीर कवि
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है । रचना साधारण और संक्षिप्त है, और भाषा हिन्दी के विकास को लिये हुए है । कवि तेजपाल ने इस ग्रन्थ को वि० सं० १५०७ वैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन समाप्त किया है । और उसे विपुलकीर्ति मुनि के प्रसाद से
बनाया था।
३ पासणाह चरिउ
तीसरी रचना पार्श्वनाथ चरित है। यह भी एक खण्ड काव्य है, जो पद्धडिया छन्द में रचा गया है। श्रीर जिसे कवि यदुवंशी साहु घूघल की अनुमति से बनाया था। यह मुनि पद्मनन्दि के शिष्य शिवनंदि भट्टारक की आम्नाय के थे। जिनधर्म रत, श्रावकधर्म प्रतिपालक, दयावंत और चतुर्विधसंघ के संघोषक थे। मुनि पद्मनन्दि ने शिवनंदी को दिगम्बर दीक्षा दी थी। दीक्षा से पूर्व इनका नाम सुरजनसाहु था जो लंबकंचुक कुल के थे। जो संसार से विरक्त और निरंतर भावनाओं का चितवन करते थे । उन्होंने दीक्षा लेने के बाद कठोर तपश्चरण किया, मासोपबास किये, तथा निरंतर धर्मध्यान में संलग्न रहते थे। बाद में उनका स्वर्गवास हो गया। प्रशस्ति में सुरजन साहु के परिवार का भी परिचय दिया है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ का चरित वही है, जो अन्य कवियों ने लिखा है, उसमें कोई वैशिष्ट्य देखने में नहीं मिलता । कवि ने इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५१५ कार्तिक कृष्णा पंचमी के दिन समाप्त की थी ।
" पणरह सय पणरह महियएहि पंचमिय किण्ह् कसिय हो मासि । कवि ने संधि वाक्य भी पद्य में दिये हैं
एसिय जिसंच्छर गएहि । वारे समसउ सरय भासि ॥"
सिरि पारस चरित रहयं वुह तेजपाल सानंद | प्रणु मणियं सुहृद्दं घूषलि सिवदास पुसेण ॥१ देवानरयण विट्ठी वम्माए बीएसोल सो दिट्ठो ।
सोहण पढमो संधि इमो जाओ ॥१२
सोमकीति
काष्ठासंघ के नन्दीतट गच्छ के रामसेनान्वयी भट्टारक लक्ष्मीसेन के प्रशिष्य मोर भीमसेन के शिष्य थे । कवि सोमकीर्ति की संस्कृत भाषा की तीन रचनाएं उपलब्ध हैं-सप्त व्यसन कथा-समुच्चय, प्रद्युम्न चरित्र मौर यशोधर चरित्र |
सप्त व्यसन कथा समुजय - में दो हजार सड़सठ श्लोकों में धूतादि सप्त व्यसनों का स्वरूप मौर उनमें प्रसिद्ध होने वालों की कथा देते हुए उनके सेवन से होने वाली हानि का उल्लेख किया है, और उनके त्याग को श्रेष्ठ बतलाया है । कवि ने इस ग्रन्थ की रचना वि० सं० १५२६ में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा सोमवार के दिन पूर्ण की है ।
प्रद्युम्नचरित्र —– दूसरी रचना है। जिसमें ४८५० श्लोकों में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जीवन परिचय कित किया है। इस ग्रन्थ में सोलह अधिकार हैं। अन्तिम अधिकार में प्रद्युम्न शंवर और मनुरुद्ध आदि के निर्वाण
१. सम पमाय संवद्ध खीणइ, पुणु सत्तगल सब बोलीणइ ।
वसाह हो कि वित्तमिदिणि, किस परिपुष्णउ जो सुह महर - भुणि ॥
२. रसनयनसमेते बाण युक्तेन चन्द्रे (१५२६)
गतिवति सति नूनं विक्रमस्यैव कासे ।
-बरांग चरिउ प्र०
प्रतिपदि घवलायां माघ मासस्य सोमे ।
हरिम दिन मनोशे निर्मितो ग्रन्थ एषः ॥ ७१ ॥ (सप्त ध्वसन कया समुच्चय प्र०)