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________________ ४७४ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ का अंतिम भाग खंडित है। लेखक ने कुछ जगह छोड़कर लिपि पुष्पिका की प्रतिलिपि कर दी है। ग्रन्थ के शुरू में कवि ने लिखा है कि यदि मैं उक्त सभी विषयों के कथन में स्खलित हो जाऊं तो चल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यह ग्रन्थ भी तोमर वंशी राजा कीर्तिसिंह के राज्य में रखा गया है। 'वृत्तसार' में छह सर्ग या अंक (अध्याय) हैं । ग्रन्थ का अन्तिम पत्र त्रुटित है जिसमें ग्रन्थकार की प्रशस्ति उचित होगी। यह प्रन्य अपभ्रंश के गाया छंद में रचा गया है, जिनकी संख्या ७५० है वोच बीच में संस्कृत के गद्य-पद्यमय वाक्य भी ग्रन्थांतरों से प्रमाण स्वरूप में उद्धृत किये गये हैं। प्रथम अधिकार में सम्यग्दर्शन का सुन्दर विवेचन है और दूसरे अधिकार में मिध्यात्वादि छह गुणस्थानों का स्वरूप निर्दिष्ट किया है। तीसरे अधिकार मैं शेष गुण-स्थानों का और कर्मस्वरूप का वर्णन है। चौथे अधिकार में बारह भावनाओं का कथन दिया हुआ है। पाँचवें अंक में दशलक्षण धर्म का निर्देश है और छठवें अध्याय में ध्यान की विधि और स्वरूपादि का सुन्दर विवेचन किया गया है । ग्रन्थ सम्पादित होकर हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाश में आने वाला है । 'पुण्णास कहा कोश' में १३ संधियां दी हुई हैं जिनमें पुष्य का आसव करने वाली सुन्दर कथायों का संकलन किया गया है। प्रथम सन्धि में सम्यक्त्व के दोषों का वर्णन है, जिन्हें सम्यक्त्वी को टालने की प्रेरणा की गई है। दूसरी संधि में सम्यतत्व के निश्शंकितादिष्ट गुणों का स्वरूप निर्दिष्ट करते हुए उनमें प्रसिद्ध होने वाले यंजन चोर का चित्ताकर्षक कमानक दिया हुआ है तीसरी संधि में निकांक्षित और निर्विचिकित्सा इन दो अंगों में प्रसिद्ध होने वाले अनन्तमती मौर उदितोदय राजा की कथा दी गई। चौथी संधि में दृष्टि मोर स्थितिकरण अंग में रेवती रामो धरणिक राजा के पुत्र वारिषेण का कथानक दिया हुआ है। पांचवी सन्धि में उपग्रहन अंग का कथन करते हुए उसमें प्रसिद्ध जिनभक्त सेठ को कथा दी हुई है। सातवीं सन्धि में प्रभावना अंग का कथन दिया हुआ है । श्रठवीं संधि में पूजा का फल, नवमी संधि में पंचनमस्कार मंत्र का फल दशवों राधि में धागमभक्ति का फल और ग्यारहवी संधि में सती सीता के शील का वर्णन दिया हुआ है। बाहरवीं सन्धि में उपवास का फल पोर १३वों सधि में पात्रदान के फल का वर्णन किया है। इस तरह ग्रन्थ की ये सब कथायें बड़ी ही रोचक और शिक्षाप्रद है । J इस ग्रन्थ का निर्माण अग्रवाल कुलावतंस साहु नेमिदास की प्रेरणा एवं अनुरोध से हुआ है और यह ग्रन्थ उन्हीं के नामांकित किया है । ग्रन्थ को श्राद्यन्त प्रशस्तियों में नेमिदास और उनके कुटुम्ब का विस्तृत परिचय दिया हुया है और बताया है कि साहु नेमिदास जोइणिपुर (दिल्ली) के निवासी मे घोर साहू तोसउ के चार पुत्रों में से प्रथम थे। नेमिदास धावक व्रतों के प्रतिपालक, शास्त्रस्वाध्याय, पात्रदान, दया और परोपकार यादि सत्कार्यो में प्रवृत्ति करते थे। उनका चित्त समुदार था और लोक में उनकी धार्मिकता और सुजनता का सहज ही आभास हो जाता है, और उनके द्वारा गणित मूर्तियों के निर्माण कराये जाने, मन्दिर बनवाने घोर प्रतिष्ठि/दि महोत्सव सम्पन्न करने का भी उल्लेख किया गया है। साहु नेमिदास चन्द्रवाड के राजा प्रतापरुद्ध से सम्मानित थे । वे सम्भवतः उस समय दिल्ली से चन्द्रवाड चले गए थे, और वहां ही निवास करने लगे थे उनके अन्य कुटुम्बी जन उस समय दिल्ली में ही रह रहे थे राजा प्रतापरुद्र चौहान वंशी राजा रामचंद्र के पुत्र थे, जिनका राज्य विक्रम सं १४६८ में वहां विद्यमान था। ग्रन्थ में उसको रचनाकाल दिया हुआ नहीं है, परन्तु उसकी रचना पन्द्रहवीं १. शिव यावरुद्द सम्माणि - पुण्यात्रय प्रशस्ति । २. चन्द्रवाड के सम्बन्ध में लेखक का स्वतन्त्र लेख देखिए । सं० १४६८ में राजा रामचन्द्र के राज्य में चन्द्रवाह में अमरकीति के कर्मोपदेश की प्रतिनिधि की गई थी जो अब नागौर के भट्टारकोय शास्त्र कार में सुरक्षित है यथाअय संवत्सरे १४६८ वर्षे ज्येष्ठ कृष्ण पंचदश्यां शुक्रवासरे श्रीमच्चन्द्रपाट नगरे महाराजाधिराज श्रीराम चन्द देवराज्ये । तत्र श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये श्री मूलसंघ गुजरगोष्ठि तद्वयमगिरिया साहू भी जमसीहा माय: सोमा तयोः पुत्राः (रारा) प्रथम उसीह (द्वितीय) सोहि तृतीय पहराज चतुर्थ सहादेव ज्येष्ठ पुत्र उसी भाग तो तस्व त्रयोः ज्येष्ठ पुषा, देल्हा द्वितीय राम तृतीय मीसम ज्येष्ठ पुत्र देव्हा भार्या हिरो (तयोः पुत्राः द्वयोः ज्येष्ठ पुत्र हा द्वितीय पुत्र नारीकर्मपदेशात दुभ पुष्टि ग्रीवा]] दृष्टि रखो मुखं कष्टेन निवितं पापलेन परिपालये ॥ नागौर कार
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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