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तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य और कवि
४४६ गचड़ पक्षी सपों का वैरी है वह सर्प विषापहारक है, यह लोक में प्रसिद्ध है उसा प्रकार गरुडमणि भो लोक में विष निवारक मानी जाती है। उसी तरह यह ग्रन्थ भी विष दूर करने के उपाय को बतलाता है, इस कारण इसका यह नाम अन्वर्थक जान पड़ता है। यह ग्रन्थ कंद इत्तों में रचा गया है। कवि ने इसे 'जीवित चिन्तामणि' भी बतलाया है । कवि इस ग्रन्थ को पुरुषार्थ चतुष्टध का कथन करने वाला बतलाता है।
इसमें १६ अधिकार हैं। जिनमें विष और उसके दूर करने के उपायों का वर्णन है।
प्रथम अधिकार में मंगल के बाद स्थावर जगम और कृत्रिम यादि विषों के भेद, सर्पो को जातियां, पोषधियों का संग्रह काल, भेद और उनकी शक्तियों के वर्णन के साथ सद् वैद्य और दुर्वेद्य के लक्षणादि बतलाये गये हैं।
दूसरे अधिकार में स्थावर विषभेद, विषाकान्त लक्षण और उनके परिहारक नस्य, पान, लेप और अंजन पादि के औषध और अनेक मंत्र दिये हैं। इसी तरह अन्य सब अधिकारों में 'विष' के दश प्रकार, लक्षण, उनके भेद, विषापहारक मंत्र और औषधियों का वर्णन किया गया है। अन्य यदि हिन्दी अर्थ के साथ प्रकाशित हो जाय तो उसका परिज्ञान हिन्दी भाषा भाषियों को भी सुलभ हो जायगा । ग्रन्थ उपयोगी है।
ग्रन्थ में कवि ने अपने से पूर्ववर्ती कुछ प्राचार्यों ग्रादि का नामोल्लेख किया है पूज्यपाद, वीरसेन, कन्दकन्द भानकाति, अमरक तितनिछष्य धर्मभूषण प्रादि ।
पं० वामदेव यह मूल संघ के भट्टारक विनयचन्द्र के शिष्य, त्रैलोक्यकोति के शिष्य और मुनि लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य ये इन्होंने अपने को इन्द्रवाम देव भी लिखा है। पडित वामदेव का कुल नंगम था। नंगम या निगम कुल कायस्थों का है, इससे स्पष्ट है कि पंडित वामदेव कायस्थ थे। अनेक कायस्थ विद्वान जैन धर्म के धारक हुए हैं। जिनमें हरिचन्द्र, पचनाभ और विजयनाथ माथर प्रादि का नाम उल्लेखनीय है। पंडित बामदेव जैन धर्म के अच्छे विद्वान, प्रतिष्ठादि कार्यो के जाता और जिन भक्ति में तत्पर थे । वामदेव ने पंच संग्रह दीपक की प्रशस्ति में अपने को-'नाना शास्त्र विचार कोविद मतिः श्री वामदेवः कृती' वाक्य द्वारा नाना शास्त्र विचार कोविद मति प्रकट किया है।
इनकी इस समय तीन रचनाएं उपलब्ध हैं। भावसंग्रह (संस्कृत), 'त्रैलोक्य दीपक' पोर पंच संग्रह दीपक । इनमें से केवल भावसंग्रह माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुआ है। शेष दोनों रचनाएं प्रप्रकाशित हैं।
भावसंग्रह-प्रस्तुत ग्रन्थ संस्कृत भाषा का पद्य ग्रन्ध है, जो ७८१ पद्यों में पूर्ण हुपा है। यह देवसेन के प्राकृत भावसंग्रह का संशोधित और परिवधित अनुवाद है। यह ग्रन्थ माणिकचन्द्र ग्रन्थ माला से प्राकृत भाव संग्रह के साथ प्रकाशित हो चुका है।
चमक धारक हुए हैं।
का नाम उल्लेखनीय है।
जाता और जिन
१. भूयापजनस्य विश्वहितः श्री मूलसंघः श्रिये, यत्राभूद्विनयेन्दुरगुतगुणः सच्छील दुग्धार्णवः । तच्छिष्योऽजनि भद्रमतिरमनस्त्रलोक्य कौति शशी। येनै कान्तमहातमः प्रमथिते स्यावाविद्याकरः ॥७७९ रष्टि स्वस्तटिनी महोघरपतिनाधिचन्द्रोदयो, वृत्त श्री कलि केलि हेमनलिन शान्ति क्षमा मन्दिरम् काम स्वात्मरक्षा प्रसन्न हृदयः संगक्षपा भास्करस्तनिष्य: क्षितिमण्डले विजयते लक्ष्मीन्दु नामां मुनिः ।।७८० श्री मत्सर्वज्ञगूजाकरण परिणतस्तत्त्वचिन्ता रसालो, लक्ष्मीचन्द्राहि पन मधुकर: श्री वामदेव: सुपीः । उत्ससिर्पस्य जाता शशिविशद कुले नैगमश्री विशाले । सोऽयं जीया प्रकामं जगति रसलसद्भाव शास्त्र प्रणेता ॥७८१
-भाव संग्रह प्रशस्ति