________________
4
तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य और कवि
की राजधानी थी, और विद्या का केन्द्र बनी हुई थी । श्रर मालवराज्य का शासक परमार वंशी नरेश विन्ध्यवर्मा था । महाकवि मदन की पारिजात मंजरो के अनुसार उस विशाल नगरी में चौरासी चौराहे थे । वहां अनेक देशों और दिशाओं से आने वाले विद्वानों और कला कोविदों की भीड़ लगी रहती थी । यद्यपि वहां अपनेक विद्यापीठ थे, किंतु उन सब में ख्यातिप्राप्त शारदा सदन नामक विशाल विद्यापीठ था। वहाँ अनेक प्रतिष्ठित धावकों जैनविद्वानों और श्रमणों का निवास था, जो ध्यान, अध्ययन और अध्यापन में संलग्न रहते थे। इन सब से धारा नगरी उस समय सम्पन्न और समृद्धि को प्राप्त थी । आशाघर ने धारा में निवास करते हुए पण्डित श्रीधर के शिष्य पण्डित महावीर से न्याय और व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया था ।
इनकी जाति वर्धरवाल थी। पिता का नाम 'सल्लखण' श्रोर माता का नाम 'श्री रत्नी' था। पत्नी का छाड़ था, जिसने अर्जुनभूपति को अनुरंजित किया था । इसके सिवाय इनके. मिलता । पं० श्राशाधर अर्जुनवर्मा के राज्य काल में ही जैन धर्म का उद्योत (नालछा ) में चले गये थे ।
जीवनकाल में धारा के राज्य सिंहासन पर पांच राजानों को बैठे हुए देखा था । किन्तु उनकी उपलब्ध रचनाए' देवपाल और उनके पुत्र जैतुगिदेव के राज्य काल में रची गई थीं। इसीसे उनकी प्रशस्तियों में उक्त दोनों राजाओंों का उल्लेख मिलता है। नालछा में उस समय अनेक धर्मनिष्ठ श्रावकों का आवास था। वहां का नेमिनाथ का मन्दिर प्राशाधर के अध्ययन और ग्रन्थ रचना का स्थल था। वह उनका एक प्रकार का विद्यापीठ था, जहां तीस-तीस वर्ष रह कर उन्होंने अनेक ग्रन्थ रचे, उनकी टीकाएं लिखी गई, और अध्यापन कार्य भी सम्पन्न किया। जैनधर्म और जैन साहित्य के अभ्युदय के लिए किया गया एण्डितप्रवर धावावर का यह महत्वपूर्ण कार्य उनकी कीर्ति को अमर रक्त्रेगा 1
नाम सरस्वती और पुत्र का नाम परिवार का और कोई उल्लेख नहीं करने के लिए धारा से नलकच्छपुर यद्यपि पं० प्रशाधर ने अपने
संवत् १२२ में माशाधर जी नालछा से सलखणपुर गये थे। उस समय वहां अनेक धार्मिक श्रावक रहते थे । मल्ह का पुत्र नागदेव भी वहां का निवासी था, जो मालव राज्य के चुंगी आदि विभाग में कार्य करता था । और यथाशक्ति धर्म का साधन भी करता था। प्राशाधर उस समय गृहस्थाचार्य थे । नागदेव की प्रेरणा से
४०८
१. "चतुरनीति चतुष्पथ सुरसदन प्रधाने "सकलदिगन्तरोपगताने कर्जविथ सहृदयकला- कोविद रसिक मुकवि संकुले। २. "योजन प्रमिति वाक्शास्त्रे महावीरतः ॥"
३. यः पुत्रं छाई गुण्यं रंजितार्जन भूपतिम्' ।
४. 'श्रीमदनपाल राज्ये श्रावक संकुले ।
जनार्थ यो नलकपुरे वसत् ॥
नलकर को नालछा कहते हैं। यह स्थान धारा नगरी से १० कोसको दूरी स्थित है। यहां भय भी जैन मन्दिर और कुछ श्रावकों के घर हैं ।
५. साधीमंडितवागवंश सुमणेः सज्जैन चूडामणैः ।
माल्हाख्यास्य सुतः प्रसीत महिमा श्री नागदेवोऽभवत् ।। १
यः शुल्कादिपदेषु मालवपतेः नात्राति युक्तं शिवं ।
श्री सल्लक्षणया स्वमाश्रितवसः का प्रापयतः श्रियं ॥२
1
श्री केशव सेनायंवयं वाक्यादुपेयुषा । पाक्षिक धावकीभावं तेनमालव मंडले ॥ ३ सल्लक्षणपुरै तिष्ठन् गृहस्थाचार्य कुंजरः । पण्डिताशाधरो भक्त्या विज्ञप्तः सम्यगेकदा || प्रायेण राजकार्येऽवरुद्ध धर्माश्रितस्य मे भाइकिंचिदनुष्ठेयं व्रतमादिश्यतामिति ॥४ ततस्तेन समीक्षो वै परमागमविस्तरं । उपविष्ट सतामिष्टतस्यायां विषिसत्तमः ॥ तेनान्यश्च यथा शक्ति भी तैरनुष्ठितः । ग्रंथो चुधाशापरेण सद्धर्मार्थं मयो कृतः ॥ ७ विक्रमार्क व्यशीत्य द्वादशाब्दशतात्यये । दशम्या पश्चिमे भागे) कृष्णे प्रथतां कथा ॥ पत्नी श्री नामदेव मंद्यारण नायिका यासोद्रत्नत्रयविधि भरतीनां पुरस्मरी ॥
- रत्नत्रय विधि प्रशस्ति