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म्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य
माधव चन्द्रवती प्रस्तत माधवचन्द्रवती मनि देवकीर्ति के शिष्य थे। जो अद्वितीय ताकिक, कवि बना और मालाचार थे। उनकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है। इनका स्तना। शकसं. १०५" १२१०) पुन संवत्सर आषाढ़ शुक्ला हवीं बुधवार को सूर्योदय के समय हुआ था तब उनके शिष्य लक्खनन्दी, माधवचन्द्र और त्रिभवन मल्लने इनकी निषद्या को प्रतिष्ठित किया था । अतः इनका समय सन् ११६३ (वि० सं० १२२०) सुनिश्चित है। यह ईसाकी १२वीं शताब्दी के विद्वान थे ।
माधवचन्द्र यह मूल संघ देशीयगण पुस्तक गच्छ हनसोगे बलि के प्राचार्य थे और शुभचन्द्र सिद्धान्त देव के शिष्य थे। होयसल नरेश बिष्णु वर्द्धन ने अपने पुत्र के जन्मोपलक्ष्य में इन्हें दोरघरट्ट जिनालय (उस समय जिसका नाम पाश्वनाथ जिनालय कर दिया गया था) के लिए प्रामादि दान दिये थे। यह लेख नय कीति सिद्धान्त चक्रवतो के शिष्य नेमिचन्द्र पंडित देव को उसी जिनालय के लिए दिया था, जो वर्ष प्रमादिन के दान शासन में है। (एपिया. फिया क.५ वेलूर १०१२४) मि.लु इराइसने इस लेख का समय सन् ११३३ ई. अनुमानित किया है। अत: यह माधवचन्द्र ईसा की १२वीं शताब्दी के पूर्वाध के विद्वान हैं।
__इन्हीं माधवसन को शक स० १०५७ (सन् ११३५ ई०) के लगभग विष्णुवर्धन के प्रसिद्ध दण्डनायक गंगराज के पुत्र बाप्पदेव दण्ड नायक ने अपने ताऊ बम्मदेव के पुत्र तथा अनेक वस्तियों के निर्माता एचिराज की मत्यु पर उनको निषद्या बनवाकर उन्ही द्वारा निर्मापित वस्तियों के लिए स्वयं एचिराज की पत्नी की प्रेरणा पर इन माधवचन्द्र को धारापूर्वक दान दिया था। (देखो, जैनलेख सं० भा० १ पृ० २६८)
कि इस लेख का समय लगभग सन् १०५७ है। अतः प्रस्तुत माधवचन्द्र ईसा की ११वीं शताब्दी के विद्वान हैं।
वसुनन्दो सद्धान्तिक वसनन्दी नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। उनमें एक वसुनन्दी योगी का उल्लेख ग्याहरवीं सदी के विद्वान अमितगति द्वितीय ने भगवती आराधना के अन्त में पाराधना की स्तुति करते हुए 'वसुनन्दि योगिमहिता' पद द्वारा किया है। जिससे वे कोई प्रसिद्ध विद्वान हुए हैं। प्रस्तुत वसुनन्दी उनसे भिन्न और पश्चाद्वती विद्वान है। किन्त श्री कुन्दकुन्दाचार्य की वंशपरम्परा में श्रीनन्दी नामके बहुत ही यशस्वी गुणी एवं सिद्धान्त शास्त्र के पारगामी प्राचार्य हुए हैं। उनके शिष्य नयनन्दी भी वैसे ही प्रख्यातकीर्ति, गुणशाली सिद्धान्त शास्त्र के पारगामी पौर भव्य सयानन्दी थे। इन्हीं नयनन्दी के शिष्य नेमिचन्द्र थे। जो जिनागम समुद्र को बेला तरंगों से धयमान और सकल जगत में विख्यात थे । उन्हीं नेमिचन्द्र के शिष्य वसुनन्दी थे। जिन्होंने अपने गुरु के प्रसाद से, प्राचार्य परम्परा से चले प्राये हुए श्रावकाचार को निबद्ध किया है।
मनन्दी के नाम से प्रकाश में माने वाली रचनायों में उपास का ध्ययन,-माप्तमा मासा वत्ति, जिनशतक पीका मलाचार वत्ति और प्रतिष्ठा सार संग्रह ये पांच रचनाएं प्रसिद्ध है। इनमें उपासकाध्ययन (बसुनन्दी श्रावका चार) प्रौर प्रतिष्ठासार संग्रह के कर्ता तो एक व्यक्ति नहीं है। प्रतिष्ठा पाठ के कर्ता बसुनन्दी पाशाधर के वाद के विद्वान है। क्योंकि प्रतिष्ठापाठ के समान उपासकाध्ययन में जिनबिम्ब प्रतिष्ठा का खुब विस्तार के साथ वर्णन करते हए अनेक स्थलों पर प्रतिष्ठा शास्त्र के अनुसार विधि-विधान करने की प्रेरणा की गई । प्रतिष्ठा सम्बन्धी प्रकरण है, उसमें लगभग ६० माथाओं में कारापक, इन्द्र,तिमा, प्रतिष्ठाविधि, और प्रतिमा
१. देखो, बसुनन्दि श्रावकाचार की अन्तिम प्रशस्ति २. उपास का ध्यवन गाथा ३६६-४१०