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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास भाग २
मान ने विवाह करने से सर्वथा इनकार कर दिया और विरक्त होकर तप में स्थित हो गये।' इससे राजा जितशत्रु का मनोरथ पूर्ण न हो सका। महावीर के विवाह सम्बन्ध में श्वेताम्बरों की मान्यता इस प्रकार है :
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में महावीर के विवाह सम्बन्ध में दो मान्यतायें पाई जाती हैं- विवाहित और अविवाहित । कल्पसूत्र और आवश्यक भाष्य को विवाहित मान्यता है और समवायांग सूत्र, ठाणांगसूत्र, पामचरित तथा आवश्यक नियुक्तिकार द्वितीय भद्रवाहु की अविवाहित मान्यता है। यथा-"एगणवीस तित्थयरा अगारवास मझे वसित्ता मुंडे भवित्ता णं प्रगाराप्रो अणगारियं ब्वइया।" (समवायांग सूत्र १६ पृ०३५)
इस सूत्र में १६ तीर्थकरों का घर में रह कर और भोग भोगकर दीक्षित होना बतलाया गया है। इससे स्पष्ट है कि शेष पांच तीथंडर कुमार अवस्था में ही दीक्षित हुए हैं। इसी से टीकाकार अभयदेव सुरि ने अपनी वृत्ति में 'शेषास्तु गचकुमारभाव एवेत्याह च' वाक्य के साथ कार रिटुनमि' नाम की दो गाथाएँ उहत की हैं
वीर अस्टिनेमि पास महिल च वासुपुज्ज च। एए मोत ण जिणे अवसेसा प्रासि रायाणो ।।२२१ रायकुलेसु वि आया विसुद्धवंसेसु वि खत्ति कुलेसु । नयइच्छियाभिसेया कुमारवासंमि एवश्या ।।२२२॥
-- आवश्यक नियुक्ति पत्र १३६ इन गाथानों में बतलाया गया है कि बीर, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ, मल्लि और वासुपूज्य इन पांचों को छोड़कर शेष १६ तीर्थङ्कर राजा हुए थे। ये पांचों तीर्थकर विशुद्ध वंयों, क्षत्रिय कुलों और राजकुलों में उत्पन्न होने पर भी राज्याभिषेक रहित कुमार अवस्था में ही दीक्षित हुए थे।
आवश्यक नियुक्ति को २२६ वीं गाथा में उक्त पांच तीथंकरों को 'पढमवए पब्बइया' वाक्य द्वारा प्रथम अवस्था (कुमार काल) में दीक्षित होना बतलाया है। उक्त नियुक्ति की निम्न गाथा में इस विषय को और भी स्पष्ट किया गया है :
गामायारा बिसया निसेविया ते कुमारवज्जे हि ।
यामागराइए सय केसि (स) विहारो भये कस्स (२५५ प्रागमोदय समिति से प्रकाशित आवश्यक नियुक्ति की मलयगिरि टीका में महावीर का नाम छपने से रह गया है । इसमें स्पष्ट रूप से बतलाया है कि पांच कुमार तीर्थङ्करों को छोड़ कर शेष ने भोग भोगे हैं। कुमार का अर्थ पविवाहित अवस्था से है। परन्तु कल्पसूत्र की समरवीर राजा की पुत्री यशोदा से विवाह सम्बन्ध होने, उससे प्रियदर्शना नाम की लड़की के उत्पन्न होने और उसका विवाह जमालि के साथ करने की मान्यता का मूलाधार क्या है यह कुछ मालूम नहीं होता, और न महावीर के दीक्षित होने से पूर्व एवं पश्चात् यशोदा के शेष १ () भवान्न कि श्रेणिक वेत्ति भूपति नपेन्द्रसिद्धायकनीयसीपतिम् ।
इमं प्रसिद्ध जितशत्रमाख्यया प्रतापवतं जितशत्रुमण्डलम् ॥६॥ जिनेन्द्रवीरस्य समुद्भवोत्सवे तदागतः कुण्डपुर सुहृत्परः । सुपूजितः कुण्डपुरस्य भूभृता नपोऽपमाखण्डलतुल्य विक्रमः ॥७॥ यशोदयायां सुतया यशोदया पवित्रया वीरविवाहमंगलम् । भनेककन्यापरिवारयारुहत्समीक्षित तुगमनोरथं तदा ll स्थिते ऽथ नाये तपसि स्वयंभूवि प्रजातकवल्यविशाललोचनं । जगद्विभूत्यै विहरत्यपि मिति क्षिति विहाय स्थितवांस्तपस्ययम् ॥६॥
-हरिवंश पुराण, जिनसेनाचार्य, पर्व ६६ (मा) प्राचार्य यतिवृषभ ने तिलोय पण्णसो' को 'वीर भरिखनेमि' नामक गाथा में बासुपूज्य, मल्लि, नेमिनाथ पौर पाश्वनाथ के साथ वर्षमान को भी पांच वालपति तीर्थकरों में गणना की है, जिन्होंने कुमार अवस्था में ही दीक्षा ग्रहण की थी। इस सम्बन्ध में दिगम्बर सम्प्रदाय को एक ही मान्यता है ।