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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहाम मान बती मगावती, ज्येष्ठा, चेलना और चन्दना था। इनमें त्रिशला कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ को विवाही थी। सुप्रभा दशार्ण देश के राजा दशरथ को, और प्रभावती कच्छदेश के राजा उदायन की रानी थी। मृगावती कौशाम्बी के राजा शतानीक की पत्नी थी। चेलना मगध के राजा विम्बसार (थणिक) की पटरानी थी । ज्येष्ठा और चन्दना माजन्म ब्रह्मचारिणी रहीं। ये दोनों ही भगवान महावीर के मंघ में दीक्षित हुई थी। उन में चन्दना प्रायिकानों में प्रमुख थी, संघ की गणनी थी। सिंहभद्र वज्जिसंघ की सेना के सेनापति थे । इस तरह चेटक का परिवार खूब सम्पन्न था। वज्जिसंघ में गणतन्त्र सम्मिलित थे, जिनमें वृजि, लिच्छवि, ज्ञात्रिक, विदेह, उग्र, भोग और कौरवादि पाठ जातियां शामिल थीं। वृजि लोगों में प्रत्येक गांव का एक सरदार राजा कहलाता था। लिच्छवियों के अनेक राजा थे, और उनमें प्रत्येक के उपराज, सेनापति और कोषाध्यक्ष आदि अलग-अलग होते थे। ये सब राजा अपने अपने गांव के स्वतंत्र शासक थे; किन्तु राज्य-कार्य का संचालन एक सभा या परिषद् द्वारा होता था। यह परिषद ही लिच्छवियों को प्रधान-शासन शक्ति थी। शासन-प्रबन्ध के लिये संभवतः उनमें से नौ प्रादमी गण राजा चुने जाते थे। इनका राज्याभिषेक एक पोखरमी के जल से होता था। वैशाली गणतंत्र के अधिकांश निवासी व्रात्य कहलाते थे। ये महन्त के उपासक थे। उनमें जैनियों के तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ का शासन या धर्म प्रचलित था। वर्तमान वसाढ़ के समीप ही 'वासुकुण्ड' नाम का ग्राम है, वहाँ के निवासी परम्परा से एक स्थल को भगवान महावीर की जन्म-भूमि मानते आये हैं और उन्होंने पूज्य भाव से उस पर कभी हल नहीं चलाया। समीप ही एक विशाल कगड है, जो अब भर गया है और जोता बोया जाता है । वैशाली की खुदाई में एक ऐसी प्राचीन मुद्रा भी मिली है, जिसमें वैशाली नाम कुडे' ऐसा उल्लेख है । इन सब प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने वासुकुण्ड को महावीर की जन्मभूमि कुण्डधामस्वकार किया है। वैशाली के पश्चिम में गण्डकी नदी वहती थी। उसने पश्चिम तट पर क्षत्रिय कुण्डपुर, ब्राह्मण कुण्डपुर, बाणिज्यग्राम, कर्मारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश प्रादि उपनगर एवं शाखानगर अवस्थित थे। क्षत्रिय-कूण्डपुर में जात, जात, ज्ञात या णाह क्षत्रियों के पांचसी घर धे। राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डपुर के अधिनायक थे। वे राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमती के धर्मात्मा पुत्र थे। उन्हें थेयांस और यशांश भी कहते थे। वे काश्यप वंश के चमकते रत्न थे। सिद्वार्थं वीर योद्धा और पराक्रमी शासक थे। राजा सिद्धार्थ का विवाह वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष राजा चेटक की अत्यन्त सुन्दर एवं विदुषी पुत्री त्रिशला के साथ सम्पन्न हुआ था, जिसका अपर नाम 'प्रियकारिणी' था, और जो लोक में विदेहदत्ता के नाम से प्रसिद्ध थी। वह पुण्यात्मा और सौभाग्यशालिनी थी। राजा सिद्धार्थ नाथ या शात क्षत्रियों के प्रमुख नेता के रूप में ख्यात थे। इसी कारण वे सिद्धार्थ कहलाते थे। वे शस्त्र और शास्त्र विद्या में पारगामी थे और भगवान पार्श्वनाथ के उपासक थे। (मा) सिन्ध्वाध्यविषये भूभद वैशाली नगरेऽभवत् । चेटकायोज-विख्यातो विनीतः परमाहतः ।।३।। तस्य देवी सुभद्राख्या तयोः पुत्रा दशाभवन् । घनायो दन्तभद्रान्तावुपेन्द्रो ऽन्यः सुदसवाक् ।।४।। सिंहभद्रः सुकुम्भोजो ऽकंपनः सपतंगकः । प्रभजन: प्रभासश्च धर्मा इव सुनिर्मला:॥|| -उत्तर पुराणे गुणभद्रः पर्व ७५ १. भारतीय इतिहास की रूप-रेखा भा० ११० १३४ २. श्रमरा भगवान महावीर पृष्ठ ५ ३. श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में त्रिशला को राजा चेटक को दहिन बतलाया है । चेटक को अन्य पुत्रियों के नामों में भी बिभिनना है। चन्दना को अंगदेश के राजा दधिवाहन की पुत्री बतलाया है।
SR No.090193
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size19 MB
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