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________________ महाभारत-युद्ध २९1 Bhairn जरासन्ध की सेना ने यादव सेना को दबाना प्रारम्भ कर दिया। यह देख कर नेमिनाथ, अर्जुन और अनावृष्टि श्रीकृष्ण के सकेत पर आगे बढ़े। भगवान नेमिनाथ ने इन्द्र द्वारा प्रदत्त ऐन्द्र, अर्जुन ने देवदत्त और सेनापति अनावृष्टि ने बलाहक शंख फका । शंख-ध्वनि सुनते ही यादव-सेना में उत्साह भर गया। अनावृष्टि ने चक्रव्यूह का मध्य भाग, नेमिनाथ ने दक्षिण भाग और अर्जुन ने पश्चिम्गेत्तर भाग क्षणमात्र में भेद दिया। तब प्रतिपक्ष का सेनापति हिरण्यनाभ मनावृष्टि के साथ, रकमा नेमिनाथ के साथ और दुर्योधन अर्जुन के साथ भिड़ गये। भगवान नेमिनाथ ने भयंकर बाण वर्षा से रुक्मी को रथ के नीचे गिरा दिया और असंख्य वीरों को तितर-बितर कर दिया। उपयुक्त अवसर पाकर पांचों पाण्डवों ने कौरवों के साथ भयंकर युद्ध किया । युधिष्ठिर शल्य के साथ, भीम टू:शासन के साथ, सहदेव शकुनि के साथ और नकुल उलूक के साथ युद्ध करने लगे। पाण्डवों ने दुर्योधन के अनेक भाइयों को मार डाला, जो जीवित रह गये, उन्हें मृतक के समान कर दिया। उधर दोनों पक्षों के सेनापतियों का लोमहर्षक द्वन्द्व युद्ध हो रहा था। हिरण्यनाभ ने मनावृष्टि को बाण वर्षा द्वारा सत्ताईस वार ग्राहत किया । उत्तर में अनावृष्टि ने अपने भयंकर बाणों द्वारा सौ प्रण दिये । हिरण्यनाभ ने अनावृष्टि की ध्वजा भंग कर दी और अनावृष्टि ने उसके धनुष, छत्र और सारथि को भेद दिया। हिरण्यनाभ ने दूसरा अनुष, संभाल लिया तो अनावृष्टि ने उसका रथ तोड़ दिया । तब हिरण्यनाभ तलवार हाथ में लेकर कूद पड़ा । अनावृष्टि ने भी तलवार पौर डाल लेकर उसका सामना किया। दोनों बोरों में भयानक युद्ध हुआ। अन्त में अनावृष्टि ने हिरण्यनाभ पर घातक प्रहार किया । उससे उसकी दोनों भुजायें कटकर अलग जा पड़ी छाती फट गई और निष्प्राण होकर भूमि पर गिर पड़ा। सेनापति के गिरते ही शत्र-सेना प्राण लेकर भागने लगी। यादवसेना में हर्ष-नाद होने लगा। बलदेव और धीकृष्पा ने चक्रव्यूह का भेदन करने वाले भगवान नेमिनाथ, अर्जुन और सेनापति अनावृष्टि का प्रेमपूर्ण मालिंगन किया। प्रथम दिन के युद्ध में यादवों को विजय हुई और शत्र सेना में शोक छा गया। श्रीकृष्ण द्वारा जरासन्ध का वध-दूसरे दिन सूर्योदय होते ही मैदान में दोनों सेनायें प्रा डटीं। व्यूहरचना पूर्ववत् की गई। तब रथ में पारूल जरासन्ध अपने मंत्री हंसक से बोला-हंसक ! मुझे यादव पक्ष के महावीरों के नाम, चिन्ह और परिचय बता, जिससे मैं उन्हीं का वध करू, अन्य साधारण जनों के वध से क्या लाभ है। तब हंसक प्रपने स्वामी को शत्रु पक्ष के सेनानियों का परिचय देते हुए कहने लगा-'देव | स्वर्ण श्रृंखलामों से युक्त श्वेत प्रश्वों और गरुड़ ध्वजा वाला श्रीकृष्ण का रथ है। स्वर्ण साकलों वाला, हरे अश्वों वाला और वृषभ ध्वजा वाला अरिष्टनेमि का रथ है । कृष्ण के दाईं ओर रीठा के समान वर्ण वाले प्रश्वों और ताल ध्वज वाला बलदेव का रथ है। इसी प्रकार अमात्य ने अनावृष्टि, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, समुद्र विजय, अक्रूर, सात्यकि, भोज, जरत्कुमार, सिंहल, मरुराज पद्यरथ, सारण, मेरुदत्त, विदूरथ आदि महारथियों का परिचय दिया। सबका परिचय पाकर जरासन्ध ने सारथि को आदेश दिया . 'सारथि ! मेरा रथ यादवों की ओर ले चल । तब जरासन्ध और उसके पुत्रों ने यादव सेना पर बाण-वर्षा करके उसे व्याकुल कर दिया। जरासन्ध के पुत्रकालयवन ने अनेक यादव कुमारों के शिर छेद दिये। तब ऋद्ध होकर सारण आगे बढ़ा और उसने खड़ग के एक ही तीव्र प्रहार में कालयवन को यमराज के घर भेज दिया। जरासन्ध के अन्य पुत्र प्रतिरोध करने भागे बढे, उन्हें श्रीकृष्ण ने अपने घातक वाणों से सदा के लिए सुला दिया । पुत्रों की मृत्यु से भयंकर क्रोध में भरकर अपने नेत्रों से आग बरसाता हुअा जरासन्ष श्रीकृष्ण के समक्ष पहुंचा । दोनों अप्रतिम वीरों में उस समय दारुण युद्ध हमा। जरासन्ध ने दिव्य नागास्त्र छोड़ा। कृष्ण सावधान थे। उन्होंने गरुडास्त्र छोड़कर उसे व्यर्थ कर दिया। तब जरासन्ध ने प्रलयकाल के मेघ के समान वर्षा करने वाला संवर्तक अस्त्र छोड़ा तो. श्रीकृष्ण ने महाश्वसन नामक प्रस्त्र के द्वारा भयंकर आँधी चलाकर उसे दूर कर दिया। इस प्रकार दोनों घीर वायव्य अस्त्र, अन्तरीक्ष प्रस्त्र, आग्नेय वाण, वारुणास्त्र, वरोचन अस्त्र, माहेन्द्र प्रस्त्र, राक्षसवाण, नारायण वाण तामसास्त्र, भास्कर वाण, अश्वग्रीव वाण, ब्रह्मशिरस वाण आदि दिव्य शस्त्रास्त्र चलाते और
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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