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नारायण कृष्ण विलाप करने लगी । रुदन सनकर परिजन भी शोकातुर हो उठे। महाराज श्रीकृष्ण और बलदेव भी यह शोकसमाचार सुनकर वहाँ प्राय । श्रीकृष्ण इस प्रकल्पित घटना से स्तब्ध रह गये। वे नाना भांति रुक्मिणी को धैर्य बंधाने लगे। तभी वहाँ आकाश मार्ग से नारद ऋषि आ पहुँचे। वे इस दारुण समाचार को सनकर क्षण-भर के लिए मौन हो गये । फिर वे श्रीकृष्ण से कहने लगे-मैं विदेह क्षेत्र में सीमन्धर भगवान से पूछकर पुत्र समाचार अतिशीघ्र लाऊँगा। तुम अब शोक छोड़ो। उसके पश्चात् नारद रुक्मिणी के निकट पहँचे। उसे शोक-संतप्त और अत्यन्त कातर देखकर नारद मे उसे भी सान्त्वना दी और शीघ्र समाचार देने का आश्वासन देकर वे वहाँ से चल दिये।
वे आकाश-मार्ग से विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी में भगवान सीमन्धर स्वामी के समवसरण में जा पहंचे। वहाँ बड़ी भक्ति और विनय के साथ भगवान को नमस्कार किया, उनको भक्ति विह्वल कण्ठ से स्तुति की और जाकर अपने उपयुक्त कक्ष में बैठ गये।
उस समय समवसरण में पद्मरथ चक्रवर्ती भी बैठा हया था। वह पांच सौ धनुष ऊंचा था। नारद केवल दस धनुष ऊंचे थे। उन्हें देखकर चक्रवर्ती अपना कुतूहल नहीं रोक सका। उसने नारद को उठाकर हथेली पर रख लिया और भगवान से पूछा-'भगवन् ! यह मनुष्य के आकार का कौन-सा कोड़ा है ? इसका क्या नाम है ?' भगवान सीमन्धर बोले-लन् ! यह सन्दीप र दोन का नारद है।' चक्रवर्ती ने पुनः प्रश्न किया'प्रभो ! यह यहाँ किसलिये आया है ?' इसके उत्तर में भगवान ने नारद के आने का उद्देश्य बताते हुए कहा'यह नौवें नारायण वृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के अपहरण के बारे में समाचार जानने पाया है। इस समय वह बालक मेघकूट पर्वत पर कालसंवर नरेश के घर पर मानन्द पूर्वक रह रहा है। वह बालक सोलहवां वर्ष पाने पर सोलह लाभ प्राप्त कर तथा प्रज्ञप्तिनामक विद्या प्राप्त कर अपने माता-पिता से मिलेगा। इसके पश्चात भगवान ने उसके अपहरण का कारण बताते हुए उसके पूर्वभवों का वर्णन किया तथा यह भी बताया कि जब उसके माने का समय होगा, तब क्या चिन्ह प्रगट होंगे।
नारद रुक्मिणी-पुत्र के समाचार ज्ञात कर अत्यन्त नन्दित हुए और सोमम्धर भगवान को नमस्कार कर वे आकाश मार्ग से मेघकट पर्वत पर पहुंचे। वहाँ वे. महाराज कालसंवर और उनकी महारानी कनकमाला से मिले। उन्होंने कुमार प्रद्युम्न को भी देखा। राजा और रानी ने उनका यथोचित सम्मान किया। उन्हें पाशीर्वाद देकर नारद द्वारका पहुंचे और यादवों को राजकुमार का समाचार सुनाया, जिसे सुनकर सभी हर्षित हो उठे। नारद इसके पश्चात् अन्तःपुर में पहुंचे और रुक्मिणी को यह हर्ष समाचार सुनाकर भगवान द्वारा कही हुई सारी बात सुनाई। उन्होंने यह भी बताया कि 'जब कुमार के पाने का समय होगा, तब तुम्हारे उद्यान में मयूर कूजने लगेगा; उद्यान की मणि वापिका कमलों से युक्त जल से पूरित हो जायेगो; अशोक वृक्ष असमय में हो ग्रंकुरित और पल्लवित हो उठेगा ; तुम्हारे यहाँ जो गगे हैं, वे पुत्र के निकट आते ही बोलने लगेगे। उन लक्षणों से तुम पुत्र के आगमन का समय जान लेना। रुक्मिणी अपने पुत्र का समाचार सुनकर हर्ष से भर उठी। उसके स्तनों से दूध करने लगा। वह इस शुभ समाचार को लाने के लिए नारद के प्रति अत्यन्त कृतज्ञता प्रगट करती हुई बोली-मापने यह समाचार लाकर मेरे दुःख के भार को बहुत हलका कर दिया है। मुझे अब इतना तो सन्तोष हो गया कि मेरा लाल मुझे एक दिन अवश्य मिल जायगा।
उघर प्रद्युम्न कुमार शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के समान बढ़ने लगा। वह कामदेव के समान अत्यन्त रूपवान था। उसने किशोर वय में ही अस्त्र-शस्त्र संचालन में निपुणता प्राप्त कर ली, आकाशगामिनी विद्या सिद्ध कर लो।
राजा कालसंवर के पाँच सौ पुत्र थे। एक बार राजा ने अपने शत्रु सिंहरथ को जीतने के लिए प्रधम्न को इन पूत्रों को युद्ध में भेजा, किन्तु वे उसे पराजित नहीं कर सके। तब प्रद्यम्न को भेजा गया। विजय-लाभ उसने शत्र को निमिष मात्र में पराजित कर दिया। राजा ने उसकी वीरता और गुणों पर
मुग्ध होकर बड़े समारोह के साथ उसको युवराज पद पर अभिषिक्त कर दिया। प्रद्य म्न के सम्मान, यश और शौर्य के कारण पांच सौ भाई उससे द्वेष करने लगे और उसके नाश का उपाय करने लगे। किन्तु जिसका पुण्य प्रबल' है, उसे कौन क्षति पहुँचा सकता है। भाइयों ने उसकी मत्यु के