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________________ २६६ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास से प्रकाश में पहुँची । वहाँ प्रांगारक और दयामा का भयानक युद्ध हुआ । कुमार ने शत्रु की छाती पर मुष्टिका प्रहार किया जिससे वह व्याकुल होकर कुमार को छोड़कर भाग खड़ा हुया । कुमार चंपानगरी के एक सरोवर में गिरे । वहाँ से निकलकर नगर में गये। वहीं उन्हें ज्ञात हुआ कि इस नगर के कुवेर चारुदत्त की पुत्री गन्धर्वसेना के लिए आज गायन-वाद्य प्रतियोगिता होने वाली है। श्रेष्ठी-पुत्री ने नियम किया है कि जो मुझे गान-वाद्य विद्या में पराजित कर देगा, वही मेरा पति होगा। इस समाचार को सुनकर कुमार भी प्रतियोगिता सभा में पहुंचे और वीणावादन और गायन कला में कुमार ने उस मानवती का मान भंग करके विजय प्राप्त की । श्रेष्ठी कन्या ने हर्ष से वरमाला उनके गले में डालकर उनका वरण किया । श्रेष्ठी ने विधिपूर्वक दोनों का विवाह कर दिया। चिरकाल तक कुमार ने वहाँ रहकर श्रानन्दपूर्वक भोग भोगे । एक दिन रात्रि में एक बेताल कन्या ने आकर कुमार वसुदेव को जगाया और बलात् वह उन्हें श्मसान में ले गई। वहाँ उसने नीलंयशा नामक एक सुन्दरी कन्या को दिखाया और कहा कि यह कन्या आपके प्रेम में ग्रस्त है और आपसे विवाह की इच्छुक है। यह ग्रसित पर्वत नगर के राजा सिहदंष्ट्र की पुत्री है। कुमार ने उससे विवाह करने की स्वीकृति दे दी । तब विद्याधरियाँ कुमार को आकाशमार्ग से प्रसित पर्वत नगर ले गईं। वहाँ शुभ मुहूर्त के साथ नीलंयशा का विवाह हो गया। कुमार वहाँ ग्रानन्दपूर्वक रहने लगे । में कुमार इस प्रकार कुमार बसुदेव ने विभिन्न स्थानों पर अनेक कन्याओं के साथ विवाह किया। उनके रूप-गुण और वीरता पर मुग्ध होकर अनेक राजाओं ने उन्हें अपनी कन्यायें प्रदान कीं । उनके आकर्षक व्यक्तित्व पर मुग्ध होकर अनेक कन्याओं ने उन्हें स्वेच्छा से वरण किया। अनेक कन्याओं को विभिन्न प्रतियोगिताओं में उन्होंने जीता । गिरितट नगर वासी ब्राह्मण पुत्री सोमश्री अचलग्राम की श्रेष्ठी पुत्री वनमाला, वेदसामपुर की कपिला, शाल गुहा नगर की पद्मावती, भद्रिलपुर की राजकुमारी चारुहासिनी, जयपुर की राजकन्या, इलावर्धन नगर की श्र ेष्ठी-पुत्री रत्नवती तथा राजकुमारी सोमश्री, विद्याधर- कन्या मदनवेगा, वेगवती, गगनवल्लभपुर की राजकन्या बालचन्द्रा, श्रावस्ती की श्रेष्ठी पुत्री बन्धुमती, और राजपुत्री प्रियंगुसुन्दरी, विद्याधर पुत्री प्रभावती, कुण्डपुर की राजकुमारी, चम्पानगरी के मंत्री की कन्या, म्लेच्छराज की कन्या जरा, अवन्तिसुन्दरी, शूरसेना, जीवद्यशा श्रादि अनेक कन्याथों के साथ कुमार वसुदेव का विवाह हुआ । तथा जरत्कुमार, पौण्ड्र आदि अनेक पुत्र हुए। इस बीच में राजगृह नरेश जरासन्ध को निमित्तज्ञानियों ने यह बताया कि जो पुरुष जुए में एक करोड़ मुद्राय जीतकर वहीं सब बांट देगा, वह तुम्हें मारने वाले पुत्र को जन्म देगा । निमित्तज्ञानियों के वचनानुसार जरासन्व ने ऐसे पुरुष की खोज करने के लिए चर नियुक्त कर दिए। एक बार दुर्घटनावश कुमार वसुदेव राजगृह नगर में पहुँचे । वहाँ वे जुए में एक करोड़ मुद्रायें जीत गये और उन्होंने ये सब मुद्रायें वहीं बांट दीं। चरों ने प्राकर कुमार को पकड़ लिया और उन्हें चमड़े की एक भाथड़ी में बन्द करके पर्वत के ऊपर से पटक दिया, जिससे वे भर जायें । किन्तु जब वे गिरे, तभी विद्याधरी बेगवती ने वेग से पाकर उन्हें बीच में ही थाम लिया। इस प्रकार वे बच गये । रोहिणी की प्राप्ति - देशाटन करते हुए कुमार वसुदेव श्ररिष्टपुर नगर में प्राये । वहाँ उन्होंने राजपथों पर मनुष्यों की भारी भीड़ और कोलाहल को देखकर एक नागरिक से कुतूहलवश पूछा- 'भद्र ! यह मनुष्यों का कैसा समुदाय है ? ये सब लोग कहाँ जा रहे हैं ?' उस नागरिक ने उत्तर दिया- 'श्रार्य ! इस नगर के महाराज रुथिर की सुलक्षणा कन्या रोहिणी का स्वयंबर है। यह मनुष्य-समुदाय वहीं पर जा रहा है ।' वसुदेव यह समाचार सुनकर कुतूहलवश स्वयंवर देखने की इच्छा से स्वयंवर मण्डप में पहुंचे। वहाँ उन्होंने देखा कि मण्डप में जरासन्ध, समुद्रविजय आदि अनेक नरेश श्राये हुए हैं थोर मणिजटित महार्घ्य शासनों पर विराजमान हैं। सबके मुखों पर दर्प और आशामिश्रित भाव हैं। कुमार ने उस समय पणव बाजा बजाने वाले का वेष धारण कर रखा था, जिससे उन्हें उनके बन्धुजन भी न पहचान सकें। उनके हाथ में भी पणव नामक वाद्य यन्त्र या तथा जहाँ पण वाद्य बजाने वाले बैठे हुए थे, वे वहीं जाकर बैठ गये । तभी रूप और शोभा की आगार, सौन्दर्य में रति को लज्जित करने वाली राजकुमारो रोहिणी ने धाय के
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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