SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नारद, वमु और पर्वत का संवाद इतना सुनते ही ऋषि क्रुद्ध होकर कहने लगे-'राजन् ! तुमने यह जानते हुए भी कि यहाँ प्रज का अर्थ रकरा नहीं । पान है. गने देवताओं ने पथ का समर्थन किया है। अत: तुम आकाश से नीचे गिर जाओ । प्राज से आकाश में विचरण करने की तुम्हारी शक्ति नष्ट होजाय। हमारे शाप से तुम पृथ्वी को भेद करके पाताल में प्रवेश करोगे। राजन् ! यदि तुमने वेद और सूत्रों के विरुद्ध वचन बोले हों तो हमारा शाप तुम पर लगेगा। यदि हमने विरुद्ध वचन बोले हों तो हमारा पतन हो ।' ऋषियों के इस प्रकार कहते ही उपरिचर बसु उसी समय आकाश से नीचे आगिरे और भूमि के विवर में प्रविष्ट होगये। १. महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३३७, श्लोक १-१७ WRAPre
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy