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________________ प्रयोविंशतितम परिच्छेद नारद, वसु और पर्वत का सवादभगवान मुनिसुव्रतनाथ के बाद उनका पुत्र सुवत राजसिंहासन का अधिकारी हुआ। यथासमय वह अपने पुत्र दक्ष को राज्य-भार सोंप कर अपने पिता भगवान मूनिसयतनाथ के पास दीक्षित हो गया और तपस्या द्वारा कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया। राजा दक्ष की रानी इला से ऐलेय नामक पुत्र हमा। हरिवंश की परम्परा उसके बाद मनोहरो नामक पुत्री हुई। जब पुत्री यौवन को प्राप्त हुई तो उसका सौन्दर्य पौर __ में वसु भी निखर आया। दक्ष अपनी पुत्री के ऊपर ही मोहित हो गया। एक दिन उसने राज्य सभा में उपस्थित प्रजाजनों से पूछा-'यदि राज्य में अश्व, गज, स्त्री आदि कोई वस्तु अनय हो और वह प्रजा के योग्य न हो तो राजा उसका अधिकारी हो सकता है या नहीं ?' प्रजाजनों ने उत्तर दिया-'देव ! 'राजा अवश्य ही ऐसी वस्तु का अधिकारी है।' राजा बोला--'मैं आप लोगों की सम्मति के अनुसार ही करूंगा।' इस प्रकार प्रजाजनों को भ्रमित कर दक्ष ने अपनी पुत्री मनोहरी के साथ विवाह कर लिया। इस प्रनैतिक कृत्य से रुष्ट होकर रानी इला अपने पुत्र और अनेक सामन्तों के साथ चली गई और इलावर्धन नाम का नगर बसाकर रहने लगी। ऐलेय को वहाँ का राजा बनाया। इलावर्धन नगर अंग देश में था। बाद में ऐलेय ने ताम्रलिप्ति नगर बसाया। फिर वह दिग्विजय करता हुआ नर्मदा तट पर पाया । वहाँ उसने माहिष्मती नामक नगर बसाया और वहीं अपनी राजधानी बनां कर राज्य करने लगा। ऐलेय के बाद उसका पुत्र कुणिम राजगद्दी पर बैठा । उसने विदर्भ देश में बरदा नदी के तट पर कुण्डिन नामक एक सुन्दर नगर बसाया । कुणिम के पश्चात् उसका पुत्र पुलोम राज्य का अधिकारी हुआ । उसने अपने नाम पर पुलोम नगर बसाया। पुलोम के बाद उसके दो पुत्र पौलोम और चरम राजा हुए। उन्होंने रेवा नदी के तट पर इन्द्रपुर नगर बसाया तथा चरम ने जयन्ती और वनवास्य नामक दो नगर बसाये। पौलोम के महीदत्त और चरम के संजय नामक पुत्र हुमा। महीदत्त ने कल्पपुर बसाया। उसके दो पुत्र हुए-अरिष्टनेमि और मत्स्य। मत्स्य दिग्विजय करता हुआ भद्रपुर और हस्तिनापुर को जीतकर हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाकर रहने लगा। उसके अयोधन प्रादि सौ प्रतापी पुत्र हुए। फिर अयोधन राजा बना । उसके मूल, मूल के शाल, शाल के सूर्य नामक पुत्र हुआ । सूर्य ने शुभ्रपुर नगर बसाया । सूर्य के अमर नामक पुत्र हुआ। उसने वच नामक नगर बसाया । अमर के देवदत्त, देवदत्त के हरिषेण, हरिषेण के नभसेन, नमसेन के शख, शङ्ख के भद्र और भद्र के अभिचन्द्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। अभिचन्द्र ने विन्ध्याचल के ऊपर चेदिराष्ट्र की स्थापना की तथा शुक्तिमती नदी के किनारे शक्तिमती नामक नगरी बसाई । अभिचन्द्र का विवाह उग्रवंश की राजकन्या वसुमती से हुआ। उससे वसु नामक पुत्र उत्पन्न हुमा। - हम वसु-नारद और पर्वत के उपाख्यान द्वारा यह बतावेंगे कि किस प्रकार पर्वत ने 'मयष्टव्यं' इसका प्रर्थ 'बकरों के द्वारा यश करना चाहिये' किया, जबकि नारद इसका अर्थ यह बताता था कि अज अर्थात जो पैदा न हो सके ऐसे धान्य से यज्ञ करना चाहिए और इन दोनों के विवाद का फैसला राजा वस ने प्राचीन काल में यह पर्वत के पक्ष में दिया, जिससे संसार में यज्ञों में पशुओं का होम होने लगा। इससे पहले हम का रूप यहाँ संक्षेप में बैदिक साहित्य के प्राधार पर यह बताना आवश्यक समझते हैं कि प्राचीन काल . . । २४९
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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