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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास अब मुझे सीता, माता और भाइयों से क्या काम है। हे विद्याधरो! तुम शीघ्र चिता तैयार करो । मैं उसमें जलकर मर जाऊँगा, अब तुम लोग भी अपने घर वापिस जानो और मेरे अपराध क्षमा करो। तब जावुनद ने उन्हें समझाया-'देव ! आप व्यर्थ ही शोक क्यों करते हैं। लक्ष्मण शक्तिवाण से मूच्छित हैं। वे सुबह तक अवश्य होश में पा जायंगे। सब लोग लक्ष्मण को होश में लाने का उपाय करने लगे। वहाँ की युद्ध भूमि साफ करके वहीं डेरे तम्बू डाल दिये और कनात लगाकर सात दरवाजों पर सात चोर पहरा देने लगे। इतने में आकाश-मार्ग से एक मनुष्य आया और भामण्डल से बोला-'देव ! आप मुझे इसी समय राम के दर्शन करा दीजिए। में लक्ष्मण को जीवित करने का उपाय बताता हूँ। तब भारण्डल उसे राम के निकट ले गये। राम को नमस्कार कर यह बैठ गया। तब राम ने उसका परिचय सौर पाने का प्रयोजन पूछा ! तो उस व्यक्ति ने कहा-'देव! म देवगीत नगर के राजा शशिमंडल का पुत्र शशिप्रभ हैं। एक बार मेघ के पुत्र विनय ने मुझ पर शक्ति का प्रहार किया था। उससे मैं मूच्छित हो गया था। मैं अयोध्या के बाहर मूच्छित पड़ा हुआ था। तब अयोध्या के राजा भरत ने मेरे ऊपर जल छिड़का, उससे मैं ठीक हो गया था। एक बार अयोध्या में बीमारी फैल गई थी। तब लोगों के कहने से राजा भरत ने राजा द्रोण को बुलाया। द्रोण ने सबके ऊपर जल छिड़क दिया तो मनुष्य और पशु ठीक हो गये। तब राजा भरत ने द्रोण से उस जल के बारे में पूछा तो उसने बताया कि मेरी पुत्री विशल्या को एक दिन उसकी धाय चन्द्रावती ने स्नान कराया था। उस जल के लगते ही एक कुतिया-जो सड़ रही थी ..ठीक हो गई। तबसे चन्द्रावती ने उस जल के प्रभाव से अनेक रोगियों को ठीक किया है । अतः विशल्या के जल के प्रभाव से लक्ष्मण की मूर्छा प्रवश्य दूर हो जायगी।' तब राम ने विद्याधरों को प्राज्ञा दी कि तुम लोग शीघ्र जाकर विशल्या का जल ले आइये। तब उसी समय हनुमान, भामण्डल और अंगद वहाँ से विमान में चलकर अयोध्या आये मोर राजा भरत से मिले। हनुमान ने सीता हरण और रावण से युद्ध की बात बताई। यह सुनकर भरत को बड़ा क्रोष पाया। उसने रणभेरी बजादी । भेरी का शब्द सुनकर अयोध्यावासी जाग गये और धीरे-धीरे सब लोग वहाँ एकत्रित होने लगे। शत्रुघ्न मंत्रियों सहित वहां पहुँचा। उससे भरत ने कहा-शत्रुधन युद्ध की तैयारी करो। अभी लका पर आक्रमण करना है। किन्तु हनुमान बोले-विद्याधरों के इस युद्ध में आपको चलने की आवश्यकता नहीं है । लक्ष्मण शक्ति-वाण के कारण मूच्छित पड़े हैं। पाप तो विशल्या का स्नान-जल दे दीजिये ।' भरत लक्ष्मण को मूर्छा की बात सुनकर रोने लगा। फिर बोला-जल से तो थोड़ा ही लाभ होगा। अच्छा यही होगा कि आप लोग विशल्या को ही अपने साथ लेते जाइये। उसके पिता द्रोण ने विवाल्या का विवाह लक्ष्मण के साथ करने का निश्चय कर रखा है। इस प्रकार कह कर भामंडल, हनुमान, अंगद और के केई को लेकर भरत कौतुक मंगल नगर पहँचा और वहाँ राजा द्रोण से मिल कर सब समाचार बताये तथा उनमे विशल्या की याचना की। द्रोण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ विशल्या को उनके साथ कर दिया। वे लोग विशल्या को लेकर लंका पहुंचे मोर, भरत कैकेयी अयोध्या लौट गये। अयोध्यावासो राम की चिन्ता करने लगे। __ हनुमान आदि ने युद्ध स्थल पर पहुँच कर राम को विशल्या के माने का वृत्तान्त बताया। सबने विशल्या का सत्कार किया । ज्यों ही विशल्या ने लक्ष्मण के ऊपर जल छिड़का तो लक्ष्मण यह कहते हुए उठ बैठे--'कहाँ गया पापी रावण । राम ने गद्गद होकर उसका मालिंगन किया और सबने लक्ष्मण को नमस्कार किया। राम की माशा से कुम्भकर्ण आदि पर भी वह जल छिड़का गया, जिससे सब लोग निविष हो गये। घायल लोग स्वस्थ हो गये । मारीच आदि मंत्रियों ने जब सुना कि लक्ष्मण पुनः जीवित हो उठे हैं तो उन्हें अपने पक्ष की निर्बलता का अनुभव हुया। उन्होंने रावण से विनयपूर्वक कहा-'देव! लक्ष्मण शक्ति से मरकर भी पुन: जीवित हो उठा है, उनके पक्ष के सभी वीर स्वस्थ हो गये है। जबकि कुम्भकर्ण, इन्द्रजीत मौर मेघवाहन अभी रावण द्वारा तक शत्रु के कारागार में हैं। हमारी बहुत सी सेना मारी जा चुकी है। उधर देवर को जीवित बहुरूपिणी हुआ जानकर सीता भी प्रसन्न है । वह राम के गुणों में अनुरागी है । वह आपको कभी स्वीकार विद्या सिद्ध करना नहीं करेगी। अतः इस कुल-विनाशक व्यर्थ युद्ध करने से क्या लाभ है। हमारे लिये अब उचित यही होगा कि सीता राम को वापिस दे दें और उनसे सन्धि कर लें।
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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