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________________ सुषभ बलभद्र, पुरुषोत्तम नारायण और मधुसुदन प्रतिनारामण १६१ मधुसूदन की यह अनधिकार चेष्टा देखकर दोनों भाइयों को अत्यन्त क्रोध आया और उन्होंने दूत को अपमानित कर निकाल दिया । जब मधुसूदन ने यह समाचार सुना तो वह कुपित होकर विशाल सेना के साथ दोनों राजकुमारों को दण्ड देने के अभिप्राय से चल दिया। दोनों भाई भी अपनी सेना लेकर चल पडे। दोनों सेनाओं में भयंकर लड़ाई होने लगी। मधुसूदन के साथ पुरुषोत्तम का युद्ध होने लगा। जब मधुसूदन ने देखा कि शत्रु किसी प्रकार दब नहीं पा रहा है तो उसने प्रबल वेग से पुरुषोत्तम के ऊपर चक्र फेंका । जिस चक ने मधुसूदन को कभी धोखा नहीं दिया था, प्राज वह भी काम न पा सका। चक्र पुरुषोत्तम को प्रदक्षिणा देकर उनकी भुजा पर ठहर गया । पुरुषोत्तम ने उसी चक्र को मधुसूदन पर चला दिया, जिससे उसके प्राण-पखेरू उड़ गये। दोनों भाई भरत क्षेत्र के तीन खण्ड के अधिपति हो गये थोरवे बलभद्र एवं नारायण कहलाये। बहुत काल तक दोनों ने राज्य-सुख का अनुभव किया। एक दिन छोटे भाई पुरुषोत्तम की मृत्यु हो गई। इस घटना से सुप्रभ अति शोक संतप्त हो गये । वे एक बार सोमप्रभ जिनेन्द्र के दर्शनों को गये। उन्होंने बलभद्र को समझाया। फलतः बलभद्र ने उन्ही के चरणों में दीक्षा ले लो। उन्होंने घोर तपस्या करके कर्मों का क्षय कर दिया पौर मोक्ष प्राप्त कर लिया। को गाये उन्होंने बलभद्र को
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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