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विपृष्ट नारायण
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विजय और त्रिपृष्ठ दोनों प्रथम बलभद्र और नारायण थे। विजय का शरीर शंख के समान श्वेत तथा त्रिपृष्ठ का शरीर इन्द्रनील मणि के समान नील था। वे दोनों सोलह हजार मुकुटबद्ध राजामों, विद्याषरों एवं
र देवों के अधिपतिः । प्रिष्ठ के देवरक्षित धनुष, शंख, चक्र, दण्ड, प्रसि, शक्ति मौर गदा ये सात रल थे। उसकी सोलह हजार रानियों थी तथा बलभद्र के माठ हजार स्त्रियां थीं। उनके चार रत्न थे-हल, मूसल, गदा पौर भाला। त्रिपृष्ठ नारायण चिर काल तक भोग भीगकर अत्यधिक प्रारम्भ और परिग्रह के कारण मरकर सातवें नरक में गया। विजय ने भाई के वियोग से दुःखित होकर सुवर्णकुम्भ नामक मुनिराज के पास संयम धारण कर लिया। वह घोर तपस्या करके केवली हुमा । अन्त में निर्वाण प्राप्त किया।
(त्रिपृष्ठ का यह जीव ही मागे जाकर चौवीसवा तीर्थकर महावीर बना।)