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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास पर चलते हुए आ गये । किन्तु जो ब्रती लोग थे, वे हरी घास के कारण नहीं आ सके और वापिस लौटने लगे । तब चक्रवर्ती ने बहुत प्राग्रह करके उन्हें दूसरे स्थल-मार्ग से बुलाया। चक्रवर्ती ने उनसे प्रेमपूर्वक पूछा - 'आपलोग पहले क्यों नहीं पा रहे थे और अब किस कारण प्रा गये हैं ? तव उन लोगों ने उत्तर दिया-'देव ! आज पर्व का दिन है। पर्व के दिनों में घास, कोंपल आदि का विधात नहीं किया जाता क्योंकि उनमें असंख्य जीव होते हैं। यह उत्तर सुनकर भरत बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें दान-भान देकर सम्मानित किया। ब्रह्मसूत्र नामक व्रतसुत्र पहनाकर उन्हें चिन्ह दिया । प्रतिमानों के अनुसार उन्हें यज्ञोपवीत धारण कराये। इसके बाद भरत ने उन लोगों को श्रावक के योग्य षडावश्यक कर्मों का उपदेश दिया और उनका ब्राह्मण वर्ण स्थिर किया। वे लोग अपने तप और शास्त्रज्ञान के कारण संसार में पूज्य हुए।.. . एक दिन चक्रवर्ती के मन में विचार उत्पन्न हमा कि मैंने ब्राह्मण वर्ण को स्थापना करके कुछ अनुचित तो नहीं किया। इसका समाधान भगवान के चरणों में जाकर कर लेना उचित होगा। यह विचार कर वे एक दिन भगवान के समवसरण में पहुँचे, भगवान की बन्दना और स्तुति की। फिर हाथ जोड़कर विनयपूर्वक निवेदन किया-'प्रभो ! मैंने श्रावकाचार में कुशल और व्रतों के पालन करने वाले त्यागियों को ब्राह्मण संज्ञा देकर नवीन ब्राह्मण वर्ण की स्थापना को है, और उन्हें प्रतिभागों के अनुसार एक से लेकर ग्यारह तक यज्ञोपवीत व्रतों के चिन्ह स्वरूप प्रदान किये हैं। आपके रहते हुए मैंने मूर्खतावश यह कार्य किया है। हे देव ! मेरी यह जानने की इच्छा है कि ब्राह्मण वर्ण की स्थापना करके मैंने कुछ अनूषित तो नहीं किया। चक्रवर्ती का प्रश्न सुनकर भगवान ऋषभदेव को दिव्य वाणी प्रगट हुई-हे वत्स! तुमने धर्मात्मा द्विजों की पूजा की, उनका सम्मान किया, यह कार्य तुमने उचित किया। किन्तु इसमें जो दोष है, वह सुन । जब तक कृत युग अर्थात् चतुर्थ काल रहेगा, तब तक ये द्विज ब्राह्मण उचित प्राचार का पालन करते रहेंगे। किन्तु ज्यों-ज्यों फलि युग अर्थात पंचम काल निकट प्राता जाएगा, इनमें जातिमद बढ़ता जाएगा। ये सदाचार से भ्रष्ट होकर मोक्षमार्ग के विरोधी हो जायेंगे। आज इन्हें जो यह सम्मान मिल रहा है, पंचम काल में इस सम्मान का मद इन्हें विवेकहीन बना देगा। वे अपने पापको और अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ मानकर मोक्षमार्ग विरोधी शास्त्रों की रचना करेंगे। ये मिथ्यात्व में फसकर धर्मद्रोही बन जायेंगे।.ये एक दिन हिंसा को भी धर्म मानने लगग, स्वयं मांस भक्षण करने लगेंगे और प्राणी हिंसा द्वारा मुक्ति के मिथ्यामार्ग का प्रचार करेंगे। इसलिए यद्यपि वर्तमान में ब्राह्मण वर्ण की स्थापना में कोई भनौचित्य नहीं है, किन्तु भविष्य में ये ब्राह्मण ही जैनधर्म के कट्टर शत्रु बन जायेंगे। भगवान के मुखारविन्द से ब्राह्मण वर्ण की स्थापना सम्बन्धी अपने कार्य का ऐसा भयंकर परिणाम सुनकर चक्रवर्ती को बड़ा पश्चाताप हुपा । ९. भरत के सोलह स्वप्न एक रात्रि को चक्रवर्ती भरत सुख-निद्रा में निमग्न में । रात्रि के अन्तिम प्रहर में उन्होंने कुछ स्वप्न देखे । अचानक उनकी निद्रा भंग हो गई। उनके मन पर उन स्वप्नों का प्रभाव गहरा पड़ा । जागकर वे उन स्वप्नों के सम्बन्ध में विचार करने लगे। उन्हें यह निश्चय हो गया कि ये स्वप्न भविष्य के सूचक हैं। जब तक इस भरतखण्ड में तीर्थंकरों का पुण्य-बिहार रहेगा, तब तक किसी अनिष्ट की संभावना नहीं है। किन्तु पंचम काल फल दष्टिगोचर होगा। इन स्वप्नों का स्पष्ट फल राजा और प्रजा में विप्लय के रूप में दिखाई पडेगा । ये स्वप्न
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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