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________________ भरत-बाहुबली-खण्ड १३. भरत की धर्म-रुचि पूत्रोस्पत्ति, चकोत्पत्ति और भगवान को केवलज्ञान-प्राप्ति के तीन समाचार एक समय में एक दिन भरत महाराज राजदरबार में बैठे हए थे। तभी धर्माधिकारी पुरुष ने पाकर समाचार दिया---'परम भद्रारक महाराज की जय हो । तीन लोत्रा के स्वामी भगवान ऋषभ देव को केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई है। पुरिमताल नगर के उद्यान में इन्द्र और देव भगवान का केवलज्ञान कल्याणक मनाने के लिये एकत्रित हुए हैं।' इसी समय प्रायुधशाला की रक्षा करने वाल अधिकारी पुरुष ने सम्राट का अभिवादन करते हुए उच्च स्वर से निवेदन किया-'सम्राट का यश-वैभव दिगन्त व्यापी हो। प्रायधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हया है। अभी सैनिक अधिकारी निवेदन समाप्त भी नहीं कर पाया था कि अन्तःपुर के कञ्चुकी ने सम्राट के चरणों में झुककर एक और हर्ष समाचार सुनाया'देव के कुल और वैभव को बृद्धि हो । देव के पुत्र-रत्न को उत्पत्ति हुई है ।' तीनों कार्य एक साथ हुए । तीनों के समाचार एक साथ प्राये । सुनकर सम्राट एक क्षण के लिये विचार मान होगये तीनों ही हर्ष समाचार हैं। फिर इनमें से किसका उत्सव पहले करना चाहिये । ये तीनों .समाचार क्रमशः धर्म, अर्थ और काम पूरुषार्थ के फल हैं। भगवान के केवल ज्ञान की प्राप्ति का समाचार धर्म का परिणाम है। चक्ररत की प्राप्ति अर्थ-पुरुषार्थ का फल है क्योंकि चक्र से ही अर्थ-प्राप्ति होगी। इसी प्रकार पूत्रोत्पत्ति का समाचार काम पूषार्थ का फल है । किन्तु वस्तुतः तो ये तीनों ही धर्म के साक्षात् फल हैं। इन सबका मूल धर्म है। अत: सबसे प्रथम धर्म-कार्य करना चाहिये। प्रथम कंवल्य-पूजा, सांसारिककायं बाद में सम्राट ने तीनों कार्यों में धर्म को प्रमखता दी। प्रत: उन्होंने भगवान के केवलज्ञान की पूजा करने का निश्चय किया। वे अपने पासन से उठे और सात पग चलकर वहीं से भगवान की भाव वन्दना की। फिर उन्होंने नगर में घोषणा कराई कि भगवान ऋषभदेव को लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है। महाराज भरत बन्धु बान्धवों सहित भगवान के दर्शनों के लिये प्रस्थान कर रहे हैं। सब नगरवासी भी महाराज के साथ जाकर भगवान के दर्शनों का पुण्य-लाभ लें।' राजकीय घोषणा को सुनकर परिजन मोर पुरजन सभी एकत्रित हो गये। तब महाराज भरत अपने बन्धुनों, अन्तःपुर को स्त्रियों और नागरिकों के साथ सेना लेकर और पूजा की बड़ी भारी सामग्री लेकर रवाना हए। लोग विविध वाहनों पर चल रहे थे । सेना में विविध प्रकार के वाद्य बज रहे थे। विविध प्रकार की ध्वजायें फहरा रही थीं। जब भरत पुरिमताल नगर के बाहर पहुंचे तो सबने एक प्रदृष्टपूर्व दृश्य देखा; समवसरण लगा हना था; त्रैलोकेश्वर भगवान प्रशोक वृक्ष के नीचे गन्ध कुटी में विराजमान हैं। भरत ने सर्व प्रथम समवसरण की प्रदक्षिणा दी। फिर वे द्वार से भीतर प्रविष्ट हुए । वहां उन्होंने मानस्तम्भों की पूजा की। फिर वे समवसरण की
SR No.090192
Book TitleJain Dharma ka Prachin Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size15 MB
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