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________________ ६२] ✰✰✰✰✰✰* श्री जैनव्रत-कथासंग्रह *********** *** भवांतर की गुरुमुखसे सुनकर अपनी आत्मनिन्दा की और शुभ भावोंसे मरकर स्वर्गमें देव हुई। जिनमती और धनभद्र भी व्रतके प्रभावसे स्वर्गमें देव हुए। अब वहांसे आकर विदेह क्षेत्रमें जन्म लेकर मोक्ष जायेंगे। इस प्रकार जिनमती और धनभदने कोकिलापंचमी व्रत पालन कर उत्तम गतिका बन्ध किया। जो अन्य नरनारी यह व्रत करें तो क्यों न उत्तम पदको प्राप्त होयेंगे। अवश्य ही होयेंगे। धनभद्र अरु franai, कोकिला पंचमी सार । कियो व्रत शुभ बन्ध कर, जासे मुक्ति मंझार ॥ 444 ^^^^ १२ श्री चन्दनषष्ठी व्रत कथा देव नमो अरहन्त नित, वीतराग विज्ञान । चन्दrषष्ठी व्रत कथा, कहूँ स्वपर हित जान ॥ काशी देशमें बनारस नामका प्रसिद्ध नगर है। जिसको तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवानके अपने जन्म धारण करनेसे पवित्र किया था। उसी नगरमें किसी समय एक सूरसेन नामका राजा राज करता था। उसकी रानीका नाम पद्मनी था । एक दिन वह राजा सभामें बैठा था कि वनपालने आकर छ: ऋतुओंके फल फूल लाकर राजाको भेंट किये। राजा इस शुभ भेटसे केवली भगवानका शुभागमन जानकर स्वजन और पुरजन सहित वंदनाको गया और भक्तिपूर्वक प्रदक्षिणा करके नमस्कार करके बैठ गया। 1 श्री मुनिराजने प्रथम ही मुनिधर्मका वर्णन करके पश्चात् श्रावक धर्मका वर्णन किया। उसमें भी सबसे प्रथम सब धर्मोका
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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