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________________ ५२] *** श्री जैनव्रत-कथासंग्रह *********** ** यह सुनकर राजाने स्वयंवर मण्डप रचाया और सब देशोंके राजकुमारको आमंत्रण पत्र भेजे। जब नियत समय पर राजकुमारगण एकत्रित हुए तो कन्या रोहिणी एक सुन्दर पुष्पमाला लिये हुए सभामें आई और सब राजकुमारोंका परिचय पानेके अनन्तर अंतमें राजकुमार अशोकके गलेमें वरमाला डाल दी। राजकुमार अशोक रोहिणीसे पाणिग्रहण कर उसे घर ले आया और कितनेक काल तक सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया । एक समय हस्तिनापुरके वनमें श्री चारण मुनिराज आये। यह समाचार सुनकर राजा निज प्रिया सहित श्री गुरुकी वंदनाको गया, और सीन प्रदक्षिणा दे दण्डवत करके बैठ गया। पश्चात् श्री गुरुके मुखसे तत्त्वोपदेश सुनकर राजा हर्षित मन हो पूछने लगा - स्वामी! मेरी रानी इतनी शांतचित क्यों है ? तब श्री गुरुने कहा- सुनो, इसी नगरमें वस्तुपाल नामका राजा था और उसका धनमित्र नामका मित्र था । उस धनमित्र के दुर्गन्धा कन्या उत्पन्न हुई । सो उस कन्या को देखकर माता पिता निरन्तर चिंतावान रहते थे कि इस कन्याको कौन वरेगा ? पश्चात् जब वह कन्या सयानी हुई तब धनमित्रने उसका ब्याह धनका लोभ देकर एक श्रीषेण नामके लडके (जो कि उसके मित्र सुमित्रका पुत्र था) से कर दिया। यह सुमित्रका पुत्र श्रीषेण अत्यन्त व्यसनासक्त था। एक समय वह जुआमें सब धन हार गया, तब चोरी करनेको किसी के घरमें घूसा । उसे यमदण्ड नाम कोतवालने पकड़ लिया और दृढ बन्धनसे बांध दिया। इसी कठिन अवसरमें धनमित्रने श्रीषेणसे अपनी पुत्रीके ब्याह करनेका वचन ले लिया था । इसीलिए श्रीषेणने उससे ब्याह तो कर लिया, परंतु वह स्वस्त्रीके शरीरकी अत्यन्त दुर्गन्धसे पीडित होकर एक ही मासमें उसे
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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