SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १२३ नवधाभक्ति कर मुनिराजको भोजन कराना और नव वर्ष पूर्ण होनेपर उद्यापन करना। सो नव नव उपकरण मंदिरोंमें चढाना, नव शास्त्र लिखवाना, नय श्रावकोंको भोजन कराना, नव नव फल श्रावकोंको बांटना समवशरणका पाठ पढना, पूजन विधान करना आदि। श्री रविवार ( आदित्यवार ) व्रत कथा ******************************** " इस प्रकार गुणसुंदरी व्रत लेकर घर आई और सब कथा घरके लोगोको कह सुनाई तो घरवालोंने सुनकर इस व्रतकी बहुत निंदा की। इसलिये उसी दिनसे उस घरमें दरिद्रताका वास हो गया । सबलोग भूखों मरने लगे, तब सेठके सातों पुत्र सलाह करके परदेशको निकले। सो साकेत (अयोध्या) नगरीमें जिनदत्त सेठके घर जाकर नोकरी करने लगे और सेठ सेठानी बनारस ही में रहे। कुछ कालके पश्चात् बनाएसमें कोई अवधिज्ञानी मुनि पधारे, सो दरिद्रतासे पीडित सेठ सेठानी भी वन्दनाको गये और दीन भायसे पूछने लगे हे नाथ! क्या कारण है कि हम लोग ऐसे रंक हो गये ? तब मुनिराजने कहा- तुमने मुनिप्रदत्त रविवार व्रतकी निंदा की है इससे यह दशा हुई है। यदि तुम पुनः श्रद्धा सहित इस व्रतको करो तो तुम्हारी खोई हुई सम्पत्ति तुम्हें फिर मिलेगी। सेठ सेठानीने मुनिको नमस्कार करके पुनः रविवार व्रत किया, और श्रद्धा सहित पालन किया जिससे उनको फिरसे धन धान्यादिकी अच्छी प्राप्ति होने लगी । परंतु इनके सातों पुत्र साकेतपुरीमें कठिन मजूरी करके पेट पालते थे तब एक दिन लघु भ्राता गुणधर वनमें घास काटनेको गया था, सो शीघ्रतासे गड्डा बांधकर घर चला आया और हंसिया ( दाँतडुं ) वही भूल आया। घर आकर उसने भावजसे भोजन मांगा। तब वह बोली
SR No.090191
Book TitleJainvrat Katha Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy